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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीकाअ १सू. २४ महावीरसमवसरणम् ३१३ एकाभिमुखान् निगच्छतः पश्यति, दृष्ट्वा 'कंचुइपुरिसं' कञ्चकिषुरुषंअन्तःपुरमाहरिकं शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादीत्-किं खलु भो देवानु. प्रिय ! अद्य राजगृहे नगरे 'इंद महेइ वा' इन्द्रमहा=इन्द्रोत्सवः इ' इत्यलंकारार्थः वा शब्दः समुच्चयार्थकः, 'खंदमहे इचा' स्कन्दमहः स्कन्दा-शिवपुत्रः कार्तिकेयः इ शब्दो वा शब्दश्च पूर्ववद् व्याख्येयः। एवं-रुद्दसिव वेसमणनागजक्खभूयतलायरुक्खचेइयपव्यय उजाणगिरि जत्ताइवा' रुद्रः-एकादशसु रुद्रेषु कश्चिद रुद्रविशेषः, शिव:-प्रसिद्धः, वैश्रमणः यक्षराज:-कुबेरः नागः= भवनपतिविशेषः, यक्षभूतौ-व्यन्तरविशेषौ, नदी प्रसिद्धा, तडागः जलाशयः कुमारने उस समय राजमार्ग की ओर देखा। (तएणं से मेहेकुमारे ते बहवे उग्गे जाव एगदिसि एगाभिमुहे निगच्छमाणे पासइ) तो उसे ज्ञान हुवा कि ये सब उग्र आदि के वंश के मनुष्य आज जो एक ही दिशा की तरफ एक लक्ष्य बांधकर जो जा रहे हैं सो क्या कारण है ? इस प्रकार विचार कर आते ही उसने उसी समय (कंचुइपुरि से सहावेइ) कंचुकी को बुलवाया-और (सद्दावित्ता) बुलाकर (एवं वयासी) उससे ऐसा कहा-(कि णं भी दवाणुप्पिया अज्जगगिहे नयरे इंदमहेइवा खंदमहेइ वा एवंरुदसिववेसमणनागजक्वभूय नइतलाय सक्खवेईय पव्वय उजाण गिरिजत्ताइत्ता) भो देवानुपिय? क्या आज राजगृह नगर मे इन्द्र महोत्सव है अथवा कार्तिकेय का कोई उत्सव है, अथवा ११ रूद्रोंमे से किप्ती ऐक रुद्रका उत्सव है अथवा शिव का उत्सव है ? या यक्ष राजका उत्सव है ? या किसी भवन पति देव विशेष का उत्सव है ? या कि किसी यक्ष, का या भूत का उत्सव डतो. ते समये भेभारे २००४ मा १२५ यु. (तएणं से मेहे कुमारे ते वहवे उग्गे जाव एगदिसि एगाभिमुहे निगच्छमाणे पासइ) 3 2 वगेरे વંશના બધા માણસો એક લક્ષ્ય રાખીને એક જ તરફ જઈ રહ્યા છે તેનું શું કારણ छ? सामवियार थतir तणे तरत (कंचुइपुरिसे सदावेड) युटीन मासाव्या भने (सदावित्ता) मासावीन ( एवं वयासी किंणं भो देवाणुप्पिया ? अज रायगिहे नयरे इंदमहेइया खंदहेहइवा एवं सदसिववेसमणनाग जक्ख भूयनइतलायरुक्खचेइयपव्यय उजाणगिरिजत्ताइवा) હે દેવાનુપ્રિય! શું આજે રાજગૃહનગરમાં ઈન્દ્ર મહોત્સવ છે, અથવા કાર્તિકેયને કેઈ ઉત્સવ છે અથવા અગિયાર રૂદ્રમાંથી કેઈ એક રૂદ્રને ઉત્સવ છે, અથવા યક્ષરાજને (કુબેર) ઉત્સવ છે, અથવા કઈ ભવનપતિ દેવ વિશેષને ઉત્સવ છે. અથવા શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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