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________________ ३१० ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे प्रत्ययं-संमानहेतोः, 'कोउहल्ल वत्तियं कौतूहलपत्ययं अपूर्ववस्तु दर्शनार्थमिति भावः। केचन 'असुयाई अश्रुतानि, 'मुणिस्सामो' श्रोष्यामः इति हेतोः इत्यत्र, ऽबोध्यम्। 'सुयाई' श्रुतानि, तिस्संकियाई निःशङ्कितानि, 'करिस्सामो' करिष्यामः, 'अप्पेगइया' अप्येके केचन, मुंडा' मुण्डाः 'भवित्ता' भूत्वा श्रागाराओ अगारात्गृहात, 'अणगारियं' अनगारितांसाधुतां 'पवइस्सामो' प्रजिष्यामः-प्राप्स्यामः अप्पेगइया' अप्ये के-केचन "पंचाणुबइयं' पञ्चाणुव्र तिकं, 'सत्तसिक्खावइयं' सप्तशिक्षातिकम् , एवं 'दुवालमविह' द्वादविधं गिहिधम्म' गृहिधर्म 'पडिवन्जिस्सामो' प्रतिव्रजिष्यामः स्वीकरिष्यामः इति हेतोः, तथा अप्पेगइया' अप्ये के-केचन 'जिणभत्तिरागणं' जिनभक्तिरागेण= आराधना करना इसका नाम पूजा है ।(अप्पेगइया तक्कारवत्तिय) कितनेक उनका सत्कार करने के लिये कितनेक(अप्पेगइया सम्माणवनियं)सन्मान करने के लिये कितनेक(अफेगइया कोउहल्लवत्तिय) अपूर्व वस्तु के देखने की उत्कठाकी निवृत्ति करने के लिये, कितनेक (असुयाई ) अश्रुत वस्तुका (सुणिस्सामो) श्रवण करना प्रभु के पास प्राप्त होगा इसके लिये कितनेक (सुयाई निस्संकियाइं करिस्सामो) महात्माओं के मुखसे पहले सुनी गई बात प्रभुके निकट शंका रहित हो जायगी ईसके लिये (अप्पे गइया) कितनेक (मुंडा भविना आगाराओ अणगारियं पवइस्सामो) इस भावना से प्रेरित होकर कि मुंडित होकर प्रभुके पास गृहस्थ से अबमुनिपद धारण करेंगे इसके लिये (अप्पे गइया पंचाणुवइयं सत्त सि. वरवावइयं दुवालसविहं गिहिधम्भं पडिव जिम्सामो) कितनेक पंच अणुव्रतों को सात शिक्षाव्रतों को इस तरह १२ प्रकार के गृहस्थ धर्म को प्राप्त करेंगे इसके लिये, (अप्पे गाया) कितनेक, (जिणभत्ति रागेण) केवल ४२वा माटे,४ा (सम्माणवत्तियं) सन्मान ४२वा भाटे, 3413 (को उहल्लवत्तियं) महमुत वस्तुने वानी 383111 उपशमन भाटे, 3८३३४ (असुयाई )२मश्रुतस्तुनु (सुणिस्सामो) श्रवण प्रभु पासे प्राप्त थशे, अर्थात् २५पूर्व तत्त्व सinाम ॥ (सुयाई निस्संकियाइं करिस्सामो) llon महात्मान्य'नी पासेही सामोटी पात प्रभुनी पासे राति २ भाटे, (अप्पेगइया) 32(मुंडा भक्त्तिा ) आगाराओ अणगारियं पव्व इस्मामो) 2. मानाथी प्रेरा ने भुडित ने प्रभुनी पासे २५ भटीने ये भुनियह पा२७ ४१५ मे भाटे, (अप्पेगइयापंचाणुवइयं सत्तं सिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिजिजस्सामो) કેટલાક પાંચ અણુવ્રતોને સાતશિક્ષા વ્રતને આ રીતે ૧૨ પ્રકારના ગૃહસ્થને धारण प्रशन श्रा१४च स्वारीशु. मे भाटे (अप्पेगइया) 3८८४ (जिणभत्ति रागेण) શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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