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________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे २६० ज्ञानसंपन्नाः, ताभिः 'विणीयाहि' विनीताभिः =स्वामिमनोऽनुकूलकार्यकरण शीलाभिः, 'चेडियाचक्क चालबरिसघरकं चुइ महयरगविंदपरिक्खित्ते' चेटिकाचक्रवालवर्षधर कंचुकिमहत्तरकवृन्दपरिक्षिप्तः तत्र चेटिकाः दास्यः, तासां चक्रवालं = समूहः, वर्षधराः नपुंसकीकृताः अन्तःपुररक्षकाः, कंचुकिनः = अन्तपुर चारिणोवृद्धाः उक्तं च "अन्तःपुरचरोवृद्धो, विप्रो' गुणगणान्वितः । सर्वकार्यार्थ कुशलः, कंचुकीत्यभिधीयते ॥ १॥” महत्तरका:- अन्तःपुरकार्यचिन्तकाः, तेषां वृन्दं समूहः तेन परिक्षिप्तः युक्ताः। अत्रायं विवेकः अनार्यदेशोत्पन्नानां किराती प्रभृतीनां ग्रहणं तत्तद्देशीय भाषा परिज्ञानेन विदेशवृत्तान्तपरिज्ञानेन च स्वदेशरभादिद्योतनम्, स्वदेशग्रहणात् स्वभाषा-स्व सदाचार - परिरक्षणेन इह परत्रकार्य सिद्धिर्जायते । 'हत्थाओ हत्थं संहरिज्जमाणे' हस्तात् हस्तं संह्रियमाणः एकस्या' हस्तादपरस्या 'हस्ते संघियमाणाः, 'अंकाओ अंकं परिभुज्जमाणे' अङ्कादङ्कं परिभुज्यमानः=एकस्याःक्रोडतः अपरक्रोंडे परिपाल्यमानः, सुखानुभवं कुर्वाणः परिगिज्जमाणे' परिगीयमानः = शिशुमसादार्थ दयादाक्षिण्यशीर्याद्यर्थ गीत विशेषैर्गीयमानः, 'उबलालिज्जमाणे' स्त्रियों से घिरा रहता था उसका कारण यह है कि उसे उनके द्वारा अपनी भाषा तथा अपने देशका आचार विचार ज्ञात होता रहे ताकि वह अपने देश में और परदेश में भी कार्य की सिद्धि करने में सवर्थ बना रहे । (हत्थाओ हत्थं संहरिजमाणे ) यह मेघकुमार एक स्त्री के हाथ से दूसरी स्त्री के हाथ में सदा रहता था (अंकाओ अंकं परिभुज्जम णे) एक की गोदी से दूसरी की गोदी में सुखानुभव करता था । ( परिगिजमाणे) इसे प्रसन्न रखने के लिये दासिया ऐसेर गीत गाती रहती थीकि जिन यतों में दया दाक्षिण्य एवं शौर्य आदिविषय भरपूर रहते थे ( चालिमाणे ) यह 'पात्री आदिको की करांगुली पकड कर चलता था જન એ છે કે તેમના દ્વારા પોતાની ભાષા તેમજ પેાતાના આચાર-વિચાર, રહેણીકરણીની જાણ થતી રહે, તેથી તે દેશ વિદેશમાં પેાતાના કાર્યની સિદ્ધિ સહેલાઈથી કરી શકે. (हत्थाओ हत्थं संदरिजमाणे) भेधभार मे स्त्रीना हाथथी मील श्रीना हाथमां हमेशां हुतो. (अंकाओ अंकं परिभुज्जमाणे) सेना मोणामांथी मीलना जोणामां सुखानुभव भेजवतो हुतो. (परिगिजमाणे) भेघकुमारने प्रसन्न राजवा भाटे हासीमो हया, हाक्षिएय भने वीर रसधी परिपूर्ण गीत गाती हुती. ( चालिजमाणे) भेघठुभार धायभाता वगेरे नी हाथनी मांगणी गाडीने यासतो तो. ( उवलालिजमाणे) و શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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