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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ.१ २० मेधकुमारजन्मनिरूपणम् २४९ स्थितः कुलनर्यादा 'तत्र पतिता धातूनाम नेकार्थत्वात् प्रचलिता या पुत्र जन्मो त्सवहेतुका क्रिया यस्यां सा तथोक्ता तां, 'दस दिवसियं' दशदिसिकां-दशानिकी पुत्रजन्मोत्सवसम्बधिक्रियां कुरुत, कृत्वा इमाम आज्ञप्तिकांममाज्ञां प्रत्यर्पयत । तेऽपि राजाज्ञाकारिणः कुर्वन्ति-उत्सवक्रियां भूपनि देशानुसारेण संपादयन्ति । कृत्वा-सपाद्य 'तहेव पञ्चप्पिणंति' तथैव पत्यर्पयन्ति-भूपाय निवेदयन्ति । ततः खलु स श्रेणिको राजा वाह्यायां उपस्थानशालायां सिंहासनबरगतः पौरस्त्याभिमुखः सन्निषण्णः उपविष्टः । तदनु किं करोतीत्याह'सइएहिय' शतकैश्च-शतमूल्यकैः शतसंख्यकैश्च, 'साहस्सिएहिय' साहसिकैश्चसहसमूल्यकैः सहस्रसंख्यकैश्च, 'सयसाहस्सिएहिय' शतसाहस्रिकैश्च-लक्षमल्यकै लक्षसंख्यकैश्च, 'जाएहि' जातैः द्रव्यसम है रित्यर्थः, 'दाए हिं भाएहि' दायैर्मागैः= कमी आप लोग न करे-जब यह सब व्यवस्था ठीक हो जावे तो आप लोग हमे इसकी सूचना देवें । (जाव पञ्चप्पिणंति) इस तरह राजा की आज्ञा को शिरोधार्य कर उनलोगोने वैसाही किया-और पीछे इस की खबर राजा को दे दी। (तएणं सेणिए राया बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणव रगए पुरत्याभिमुहे सन्निसन्ने) इसके बाद वे श्रेणिक राजा बाहिरी उपस्थान शाला में पूर्व दिशा की तरफ मुख करके उत्तम सिंहासन पर जाकर विराजमान हो गये । (सइएहि य, साहस्सिएहि य, सयसाहस्सेहि य जाएहिं दाएहि य भाएहिं य, दलयमाणे२ पडिच्छेमाणे२ एवं च णं विहरइ) और वहां उन्होंने पुत्रजन्म के उत्सव के उपलक्ष्य में शतमूल्य वाले सौ, सहस्त्र मूल्य वाले हजार, तथा एकलक्षमूल्य वाले १लाख द्रव्यों को कि जिनका संविभाग योग्यतानुसार याचक जनों के लिये किया गया था वितरित किया तथा त्यारे तमे मानी ५२ मभने सत्वर मापा (जाव पञ्चप्पिणंति)मा प्रमाणे नानी આજ્ઞાને માથે ચઢાવીને તેલેકેએ તે પ્રમાણે જ કર્યું ત્યારબાદ રાજાને તેની ખબર આપી. (तपणं से सेणिए राया बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सन्निसन्ने) त्या२६ अ४ि२० २नी येरीमा उत्तम सिंहासन S५२ भूहि त२५ भेां रीने विरामान. थया. (सइएहिय, साहस्सिएहिय, सयसाहस्सेहिय, जाएहिय दाएहिय, दलयमाणे१ पडिच्छेमाणे१ एवं च णं विहरइ) भने त्यो श्रेणुि २०ये पुत्रभोत्सवनी मुशालीमा सोनी भितना સે, એક હજારની કિંમતના હજાર, તેમજ એક લાખની કિંમતના દ્રવ્ય ને-કે જેનું વિભાજન યાચકની યોગ્યતા મુજબ કરવામાં આવ્યું હતું-વહેંચ્યા. ઉત્સવમાં નિમ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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