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________________ २३२ - - ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे पुष्पादि गृह्णन्ती 'गिण्हावेमाणी य' ग्राहयन्ती सखीद्वारा 'माणेमाणी य' मानयन्ती-लतादि स्पर्शादीनां सुखमनुभवन्ती 'अग्घायमाणी' जिघ्रन्ती च पुष्पादिकम् ‘परि जमाणी' परिभुञ्जाना फलादिकम् सखीभिःसह 'परिभायमाणी' परिभाजयन्ती फलादि खाद्यवस्तूनां यथायोगं विभागं कुर्वाणा, वैभार गिरिपादनले एवं दोहदं 'विणेमाणी' विनयन्ती-पूरयन्ती 'सव्वओ' सर्वतः सर्वप्रकारेण 'समंता' समन्तात् सर्वदिक्षु 'आहिंडइ''आहिण्डते-इतस्ततो गच्छति । ततः खलु सा धारिणी देवी अकालमेघदोहदे पूर्ण सतिविनीतदोहदा-पूरित दोहदा अकालमेघप्रादुर्भावात, संपन्नदोहदा अकालमेघदर्शनात्, सम्पूर्णदोहदाअकालमेघवर्षणशोभावलोकनपूर्वकयथेच्छकीडाकरणात, संमानितदोहदा-स्वमनो। स्थानुकलसकलवस्तुलाभात् जाताचाप्यभवत् । ततः खलु सा धारिणीदेवीसेचके निमित्त ग्रहण किया और सखियों द्वारा भी उन्हें ग्रहण कराया। लतादिको के स्पर्श आदि से उसने सुखका अनुभव भी किया पुष्पों को वहां उसने सूंघा भी। सखियों के साथ२ सने फलादिकों को खाया भी। तथा उनका वहाँ उसने विभाग भी किया। इस तरह विविध क्रीडाओं द्वारा उसने वैभारगिरिके तलहट्टी में अपने दोहद की पूर्ति की। और सर्व प्रकार से बह वहां समस्त दिशाओं में इधर से उधर धूमी। (तएणं सा धारिणीदेवी विणीय दोहला संपन्न दोहला संपुन्न दोहला संमा. णिय दोहला जाया यावि होत्था) इस प्रकार वह धारिणी देवी अकाल मेध दोहद के पूर्ण होने पर अकाल मेध के प्रादुर्भाव से पूरित दोहदा अकाल मेधके दर्शन से संपन्न दोहहा अकाल मेध के प्रादर्भाव से पूरित दोहदा, अकाल मेधके दर्शन से संपन्न दोहदा, अकाल मेघ के वर्षण से शोभा का निरीक्षण करती हुई यथेच्छ क्रीडा के करने से संपूर्ण दोहदा और अपने मनोरथ के अनुकूल सकल वस्तुओं के लाभ से संमानित दोहदा बन गई। (तएणं से धारिणी देवी सेयणयगंधहत्थि મેળવ્યું. તેમણે ત્યાં પુષ્પોની સુવાસ લીધી, અને સખીજને સાથે તેમણે ફળ વગેરે ની ત્યાં તેમણે વહેંચણી પણ કરી. આ પ્રમાણે અનેક જાતની કીડાઓ દ્વારા તેમણે વૈભાર પર્વતની તળેટીમાં પિતાના દેહદની પૂર્તિ કરી. તે ત્યાં સર્વ રીતે આમતેમ ५२री (तएणं सा धारिणी देवी विणीय दोहलासंपन्न दोहलासंपन्न दोहलासंमाणिय दोहलाजाया राति होत्था) २मा प्रमाणे पारिणी देवी २४ દેહદ પૂર્ણ થયા પછી, અકાળ મેઘના પ્રાદુર્ભાવથી પૂરિત દેહદા, એકાળે મેઘદર્શનથી સંપન્ન દેહદા અકાળે મેઘવર્ષણથી –શોભાનું નિરીક્ષણ કરતી પિતાની ઈચ્છા મુજબ કીડાઓ કરવાથી સંપૂર્ણ દેહદા અને પિતાના મનોરથને અનુકૂળ બધી વસ્તુઓ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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