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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीकाःअ १ सू. १६ अकालमेधदोह निरूपणम् २१९ देव्या इममेतद्रूपं दोहदं विनयामि पूयामि । इति कृत्वा अभयस्य कुमारस्यान्तिकात् प्रतिनिष्क्रामति गच्छति, प्रतिनिष्कृम्य गत्वा उत्तरपौरस्त्ये ईशानकोणे खलु वैभारपर्वते 'वेउव्चियसमुग्धाएणं समोहणइ' वैक्रियसमुद्भातेन समवहन्ति वैक्रियसमुद्धातं करोति, समवहत्त्य कृत्वा संख्यातानि योजनानि दण्डं 'निम्सारइनिःसारयति यावद द्वितीयवारमपि वैक्रियसमुद्धातेन समवहन्ति समवहत्य 'सगज्जिय' सर्जितां मेघध्वनिसहितां, 'सविज्जुयं' सविद्युतं, 'सफुसियं' सपृ. देवीए अयमेयारूवं दोहलं विणेमित्ति कह अभयस्स कुमारस्स अंतियाओ पडिणिक्खमइ) हे देवानुपिय ? आप स्वस्थ हों और विश्वासयुक्त रहे ? अर्थात् यह तपोनुष्ठानरूप जो आप कष्ट कर रहे हो अब वह न करो मैं निश्चयतः तुम्हारी छोटी माता धारिणी देवी के इस कथित अकाल दोहले की पूर्ति कर देगा। इस प्रकार कह कर वह देव अभयकुमार के पास से निकला और (पडिणिक्खमित्ता उत्तरपुरस्थिमेणं वेभारपबए वेउब्वियसमुग्याएणं समोहणइ) निकल कर ईशानकोण में वैभार पर्वत के ऊपर क्रियसमुद्धात से उसने अपने आत्मप्रदेशों को फैलाकर बाहर निकाला (समोहणिता संखेज्जाइं जोयणाई दंडं निस्सारइ जाव दोच्चपि घेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणइ) निकल कर उन आत्म प्रदेशों के फिर उसने संख्यात योजन तक देडरूप से रचा-इसी तरह दुवारा भी उसने इसी तरह से वैक्रिय समुद्धात से आत्मप्रदेशों को फैला कर बाहर निकाला और उन्हें संख्यात योजन तक दंडाकार से परिणमाया (समोहाणित्ता खिप्पामेव सगज्जियं सफसियं तं पंचवन्न मेहणिणाओवसोहियं दिव्वं पाउससिरिं विउव्वेइ) परिणमाकर फिर उसने शीध्र ही मनोदोहलं विणेमित्ति कटु अभयस्स कुमारस्स अतियाओ पडिणिक्खमइ) હે દેવાનુપ્રિય! તમે સ્વસ્થ થાઓ અને વિશ્વાસ રાખો. એટલે કે આ જાતનું કઠણ * તપ કરીને શરીરને કષ્ટ આપી રહ્યા છે તે હવે આવું ન કરે. ચોક્કસપણે હું તમને ખાત્રી આપું છું કે તમારા નાના (અપર) માતા ધારિણી દેવીના અકાળ દોહદની પૂતિ જેમ તમે કહ્યું તેમજ કરી આપીશ. આમ કહીને તે દેવ અભયકુમારની पासेथी विrय थयो भने (पडिणिक्खमित्ता उनरपुरस्थिमेणं वेभारपव्वए वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणइ) विहाय थधन न आभा वैमा२ पर्वतमा ५२ વૈશ્યિ સમુદ્ધાત દ્વારા તેમણે પિતાના આત્મસ્થ પ્રદેશને ફેલાવીને બહાર પ્રકટ કર્યા. (समोहणित्ता संखेजाई जोयणाइ दंडं निस्सारइ जाव दोच्चंपि वेउन्चिय समुग्धाएण समोहणइ) महा२ टने ४२ तेभो आत्मप्रशाने ५२॥ सध्यात શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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