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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिटीका. अ १.१५ अकालमेधदोहदनिरूपणम् २०१ रयसंपत्ति कर्नु, ‘णन्नत्थ' नान्यत्र दिव्येन उपायेन, दिव्योपायेन विना मदी. यलधुमातुर्धारिणी देव्या मनोरथसिद्धि ने संभवतीत्यर्थः। अस्ति खल्लु मम सौध. मैकल्पवासी 'पुव्वसगइए' पूर्वसंगतिका पूर्वपूर्वकाले संगतिः-मित्रत्वं येन सह स पूर्वसंगतिकः, देवः महर्षिक: विमानपरिवारादिसंपत्सहितः, जाव महासोक्खे' यावत्-महासौग्व्यः, अत्र यावच्छन्देनेदं द्रष्टव्यम्-महाद्युतिका महतीद्युतिर्यस्य सः शरीराभरणादि दीप्तिमानित्यर्थः, महानुभागः क्रियादि. करणशक्तियुक्तः, महायशाः सत्कीर्तियुक्तः, महावल:=पर्वतायुत्पाटनसामर्थ्य वान महासौख्या विशिष्टसुखयुक्तः। 'तं' तत्तस्मात् 'सेयं श्रेयः खलु मम मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अकालदोहलमणीरहसंपत्ति करितए) माननीय उपाय से तो मेरी छोटी माता धारिणीदेवी की अकालो द्भूत मनोरथ संपत्ति की पूर्ति होना अशक्य है (णन्नत्य दिव्वेणं) एक दिव्य उपाय ही इसकी पूर्ति कर सकता है। जब ऐसी बात है तो (अस्थिणं मज्झ सोहम्मकप्पवासी पुचसंगइए देवे महिड्डिए जाव महासोक्खे) मेरा पूर्वभव का मित्र सौधर्म कल्पवासी देव हैं जो विमान परिवार आदि माहाऋद्धि सपन्न है। यहां यावत् पद से इस पाठ का संग्रह हुआ है-महाद्युतिकः महानुआग:महायशाः महाबलः महासौख्यः-इन पदों का अर्थ इस प्रकार है-शरीर आभरण आदि की दीप्ति जिसकी महान् है, वैक्रियादि करने की शक्ति से जो युक्त है, समीचीन कीर्ति से जो विशिष्ट है, पर्वत आदि जैसे महान् पदार्थों का भी जो जडमूल से उखाडने का सामर्थ्य रखता है विशिष्ट मुख से जो सदा सुखी रहता ता है। (तं सेयं खलु मम पोसहसालाए पोसहियस्स बंभयारिस्स उम्मुધારિણીદેવીના અકાળ દેહદની પૂર્તિ માનવીય શક્તિ દ્વારા થવી મુશ્કેલ છે. (જન્નस्थदिवेणं उवाएणं) ३४त हिव्य त तेनी पूतिभा समर्थ छे. तो ये (अस्थिर्ण मज्झसोहम्मकप्पवासी पुथ्वसंगहए देवे महिए जाव महासोक्खे) મારા પૂર્વભવને મિત્ર સૌધર્મ કલ્પવાસી દેવ છે. જે વિમાન વગેરેની મહાદ્ધિ સંપન્ન છે. અહીં “યાવત્' પદ દ્વારા આ પાઠને સંગ્રહ થયે છે મહાદ્યુતિક, મહાનુભાગ, મહાયશા મહાબલા, મહાસૌખ્યા, અનુકમે આ બધાને અર્થ અહીં સ્પષ્ટ કરવામાં આવે છે–કે જેમની આભૂષણે અને શરીરની કાંતિ ખૂબજ સમજજ્વલ છે, વૈક્રિયાદિ કરવાની જે શક્તિ ધરાવે છે, જે સુયશસ્વી છે, પર્વત વગેરે મોટા પદાર્થોને પણ જે મૂળથી ઉપાડવામાં સમર્થ છે, અને જે અસાધારણ સુખી છે. તે ઉપર કહેલા चांये विशेषयुत ४उपाय छे. (तं सेयं खलु मम पोसहसालाए पोसहियस्स શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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