SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. सू.११ स्वप्नविषयकप्रश्नोत्तरनिरूपणम् १४३ माज्ञाप्तिका-मदीयाऽऽज्ञां क्षिममेव प्रत्यर्पयत । ततस्ते खलु कौटुम्बिक पुरुषाः श्रणिकेन राज्ञा एवम् उक्ताः सन्तः हृष्ट यावत् हृदयाः करतलपरिगृहोतं दश नखं शिरसावर्त मस्तकेऽजलिं कृत्वा हे देव ! 'तहति' तथेति एवमेव करिष्यामः इति 'आणाए' आज्ञायाः-भूपाज्ञायाःवचनं विनयेन प्रतिश्रण्वन्ति-स्वी. कुवेन्तीत्यर्थः। प्रतिश्रुत्य श्रेणिकस्य राज्ञः अन्तिकात् पतिनिष्कामन्ति प्रतिनिक्रम्य राजगृहस्य नगरस्य मध्यमध्येन यत्रैव स्वप्नपाठकगृहास्तत्रैवोपागच्छन्ति पीछे शीध्र दो। (तएणं ते कोडं वियपुरिसा सेणियएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ट जाव हियया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्ट) इस प्रकार उनकौटुम्बिक पुरुषोंने श्रेणिक राजा क आज्ञा प्राप्त कर अधिक आनन्द माना। आनन्द से युक्त हृदय होकर उन्होंने राजा को दशनख संपन्न अंजिल मस्तक पर घुमाकर शिर पर रखीअर्थात्-उसी समय उन्हें करबद्ध होकर मस्तक झुकाकर नमस्कार किया --और कहा (एवं देवो तहचि आणाए वि गएणं क्यणं पडिसुणेइ ! जैसी आपकी आज्ञा है हम वैसा ही काम करेंगे इस तरह उन्होंने राजा का आज्ञाका बडी विनय के साथ स्वीकार किया। 'हतुट्ठ जावहियाया' में जो यह 'यावत्' पद पडा है वह ७ सात वें मूत्र में कहे गये 'चित्तमाणंदिया पोईमणा, परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण' इन पदों का संग्राहक है। (पडि. सुणेत्ता सेणियस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमंति) आज्ञा स्वीकार करके फिर वे श्रेणिक राजाके पास से चले आए (पडिणिक्वमित्ता रायगिहस्स नयरस्स मझं मज्झेण जेणेव सुमिणपाठकगिहाणि तेणेव उवागच्छति) आकर (तएणं ते कोडुबियपुरिसा सेणियएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट जाव हिघया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिंकह २ प्रमाणे શ્રેણિક રાજાની આજ્ઞા મેળવેલા તે કુટુમ્બના પુરુષે ખૂબ પ્રસન્ન થયા. હૃદયથી પ્રસન્ન થયેલા તેઓએ રાજાને દશનખ યુક્ત અંજલિને મસ્તક ઉપરફેરવીને શિર ઉપર મૂકી, એટલે કે તે જ समये ४२५ थाने शि२ नमावीन तेयाये मध्या, मने यु-(एवं देवो त. हत्ति आणाए विण एण वयण पडिसणेड) महारा०४ ! वी सापनी माज्ञा, અમે તે જ પ્રમાણે કરીશું. આ રીતે તેઓએ રાજાની આજ્ઞા બહુ જ વિનયની સાથે स्वीरी, "हट त जाव हियया" मा २ मा यावत्' ५४ छ, ते सातभा सूत्रमा सो 'चितमाणंदिया पीइमणा, परमसोमणस्सि या हरिसवसविसापमाण' २मा पहनुसयाड छे. (पडिसुणेत्ता सेणियस्स रन्नो अंतियाओ पडि निक्खमंति) माज्ञा स्वीशन तेसो श्रेxि Aon पासथी त २ह्या. (पडिणिकरवमित्तारायगिहस्स नगरस्स मज्झमज्झेणं जेणेव सुमिणपाढगिहाणि तणेव उवागच्छति) શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy