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________________ १२६ | মানামখান त्यर्थः पठेहि' प्रष्ठैः मर्दनकार्याग्रेसरैः 'कुसलेहि कुशलैः मर्दनविधिज्ञैः 'मेहाबिहि' मेधाविमिः प्रतिभाशालिभिः 'निउणे' निपुणैः-नियुक्तव्यापारगामिभिः "निउणसिप्पोवगएहि' निपुणशिल्पोपगतः, निपुणानि-मूक्ष्मानि यानि शिल्पानि अङ्गमर्दनादीनि तान्युपगतानि-अधिगतानि यैस्ते तथा तैः, अङ्गमर्दन क्रियाज्ञानसम्पन्नैरित्यर्थः । 'जियपरिस्समेहि' जितपरिश्रमैः भूयो भूयः कृत परिश्रमेऽपि अखेदितैः, 'अभंगणपरिमद्दणुव्वलणकरणगुणनिम्माएहि' अभ्यङ्गनपरिमर्दनोद्वेलनकरणगुण निर्मातृभिः तत्र-अभ्यञ्जनम् अभ्यङ्गः शरीरे तैलादिलेपः, परिमर्दनं श्रमापनोदाय हस्तादिना तत्परिघर्षणम् 'मालिश' इति भाषायाम्उद्वेलनम्-उद्वर्त्तनं पिष्टद्रव्येण शरीरपरिशोधनम्, तेषां करणेन ये गुणाः-शरीरस्वास्थ्यकान्तितुष्टिपुष्टि स्फूर्त्यादिरूपाः तेषां निर्मातृभिः विधायकैः ‘अठिसुहाए' अस्थिमुखया अस्थ्नां सुखोत्पादककारणत्वेन, अथवा अस्थीनि मुखयतीति अस्थिसुखा, तया अस्थिसुखया 'मंसमुहाए' मांससुखजनिकया 'तयासुहाए' त्वक् सुखया-चर्मसुखोत्पादिकया 'रोमसुहाए' रोममुखया-रोमराजिषु हर्षाऽति रेकाऽऽविष्कारिकया 'चउबिहाए' चतुर्विधया चतस्रो विधाः यस्याः तथा समस्त मर्दन की कला में निपुण अथवा अवसर के ज्ञाता (दक्खेहिं) शीघ्रकारी (पट्टहिं) मर्दन कार्य में अग्रेसर (कुसलेहि) मर्दन की विधि के ज्ञाता (मेहाविहिं) प्रतिभाशाली (निउणेहिं) निपुण (निपुण सिप्पोवगएहि) मुक्ष्म अंगमर्दनादिरूप शिल्प क्रिया के ज्ञाता (जियपरिस्समेहि) थकावट नहीं मानने वाले (अब्भंगणपरिमद्दणुवलण करणनिम्माएहि) अभ्यंग, परिमदेन, उदेलन करने के गुणों विधायक ऐसे (पुरिसेहि) पुरुषों से (अहिसुहाए मंसमु. हाए, तयासुहाए, रोममुहाए) अस्थि सुखकारक, मांस सुखकारक, त्वक् सुखकारक एवं रोम सुखकारक. ऐसी (चउबिहाए) चार प्रकार की (संवासुभ ाथ मने पान तजियावा (छएहि) मालिश ४२वानी मधी ४ मां iशिया२ भने योग्य मक्स२ न. नानास (दक्खेहि) अति यपण, (पढेहिं) भासिस ४२पामा अग्रेस२, (कुसलेह) भाटीशनी रीताना ना२, (मेहाविहि) सुद्धिमान, (निउणेहि) निपुण, (निपुण मिप्योवगएहिं) जीमा ! मनी भाविशनी जाने शुना। (जियपरिस्समेह) ४ मत ना थाना, (अभंगणपरिमहणुव्वलणकरणगुणनिम्माएहि) सल्यान, परिभहन देखन ४२वान गुणाने कतना(पुरिसेहि) भाणुसो पासेथा (अद्विसुहाए, मंसमुहाए. तयास्सुहाए, रोम सुहाए) 31 अस्थिाने सुम मापना२, यामीन सुभ मापना२, मने पाने ४५ मापना२ (चउविहाए) या२ प्रा२नी (संवाहणाए) मने पीवानी ठिया શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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