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________________ - १२४ মানামখান 'सहस्सरसिमि' सहस्ररश्मी, सहस्रकिरणधारिणि 'दिणयरे' दिनकरे-दिवसकरणशीले। 'तेयसा' तेजसा-दीप्त्या 'जलंते' ज्वलति-दीप्यमाने 'मरे' सूर्ये 'उट्टियमि' उत्थिते उदगानन्तरावस्थां प्राप्ते, असौ श्रेणिकः 'सयणिज्जाओ' शयनीयतः शय्यातः 'उठेइ' उत्तिष्ठति । उत्थाय च 'जेणेव अटणसाला' यत्रव अट्टनशाला व्यायामशाला 'तेणेच उवागच्छइ' तत्रैव उपागच्छति, उपा. गत्य च 'अट्टणसालं अणुपविसई' अनशालां अनुपविशति, अनुप्रविश्य 'अणेगवायामजोगवग्गणवामद्दणमल्लजुद्धकरणेहि' अनेकव्यायामयोग्यवलानव्यामर्दनमल्लयुद्धकरणैः-अनेके ये व्यायामा: शारीरिकपरिश्रमाः, तद्योग्यं तदनुकूलं यद्वलानं च कूर्दनं व्यामर्दनं च=परम्परं याहाङ्गमोटनं. मल्लयुद्धं च-मल्लक्रीडनं करणानि च मुद्गरादि चालनानि, तैः सर्वैः 'सते' श्रान्तःसामान्यतः, 'परिसिमि) हजार किरणों का धारक (दिणयरे) ऐसा दिन को करनेवाला (सरे) सूर्य जब (तेयसा जलंते) दीप्ति से जाज्वल्यमान होता हुआ (उडियंमि) उदय के बाद की अवस्था को प्राप्त कर चुका था तब श्रेणिक राजा (सय. णिज्जाओ उठेइ) अपनी शय्या से उठे (उहित्ता) और उठकर वे (जेणेव अट्टण साला तेणेव उवागच्छइ) जहां व्यायामशाला थी उस और गये। (उवागच्छित्ता अदृणसालं पविसइ) वहां जाकर वे उस व्यायामशाला में प्रविष्ट हुए। (अणुपविसित्ता अणेगवायामजोगवग्गणवामद्दणमल्ल जुद्ध करणेहिं) प्रविष्ट होकर वहां उन्होंने अनेक व्यायाम के योग्य, वल्गनकूदना, शरीर का मोडना मल्ल युद्ध करना और मुदगर आदि का फेरना प्रारम्भ किया। जब वे इन क्रियाओं से (संते परिस्संते) श्रान्त और परिश्रान्त हो भगाना समूडने सु४२ रीते सरोवरामा विसापना२ अने (सहस्सरस्सिंमि) COM२। रिपने पा२९ ४२नार (दिणयरे) नि४२ (मरे) सूर्य न्यारे (तेयसा जलंते) प्रशथी तो (उट्रियमि) ४५ पछीनी अवस्थाने भेवी यूथ्यो उता, त्यारे श्रा २० (सयणिज्जाओ) पातानी शय्यामाथी ४या (उट्टित्ता) भने जीने तेसा (जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छद) च्या व्यायामशा ती ते त२५ गया. (उधागच्छित्ता अदृणसालं पविसइ) त्यां न तमामे' ते व्यायामAmमा प्रवेश यो. (अणुपविसित्ता अणेगवायामजोगवग्गणवामदणमल्ल जद्धकरणेही ते व्यायामशाम ने त्यां तेभो ! व्यायाम ने योग्य वान (ઘેડાને બે પગે ચલાવવું) કૂદવું, શરીરને વાળવું મલ્લયુદ્ધ કરવું અને મગદળ વગેરેને ફેરવવાનું શરું કર્યું, न्यारे तमामे मा यिामाथी (संते परिस्संते) श्रान्त मने परिश्रान्त थया શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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