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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका सू ८ स्वप्नफलनिरूपणम् १०३ वग्रहेण जानाति, अवगृह्य अर्थावग्रहतो निर्णीय 'ई' ईहांसदर्थपर्यालोचनाभिमुखां गतिचेष्टाम् 'अणुपविसई' अनुपविशतिअन्तोऽवतरति स्वान्तः-करणं विचारसरणौ प्रवेशयतीत्यर्थः, अनुपविश्य 'अप्पणो' आत्मनः स्वस्य 'साभाविएणं' स्वाभाविकेन-स्वाभावसिद्धेन 'मइपुचएण' मतिपूर्वकेण-मुक्ष्मधर्मालोचनरूपो मानसो व्यापारः, तत्पूर्व केण-सूक्ष्मार्थपर्यालोचनपूर्वकेण वुद्धिविण्णा. णेणं' बुद्धिविज्ञानेन-गृहीतार्थपरिच्छेदपूर्वकविशिष्टक्षयोपशमजनितोपयोगवि. शेषेण तस्य स्वप्नस्य 'अत्थोग्गह' अर्थावग्रह-स्वप्नार्थनिर्णयं करोति, कृत्वा धारिणीदेवीं ताभिः वक्ष्यमाणरूपाभिः 'जाव' यावत्, 'इष्टाभिः' इत्यारभ्य यावत् हृदय प्रहलादनीयाभिः हृदयानन्दजननयोग्याभिः 'मिउमहुररिभियगंभीरस स्सिरियाहिं' मृदुमधुररिभितगम्भीरसश्रीकाभिः-मृदुमधुराभिः सुकोमलवर्णपदग ओगिण्डिइ) उस स्वप्न का अवग्रह ज्ञानद्वारा सामान्यरूप से विचार किया (ओगिण्हित्ता) फिर सामान्य विचाररूप अर्थ अवग्रहज्ञान-ज्ञान करने के बाद (ईई पविसइ) वे सदर्थ के पर्यालोचनके अभिमुख हुए ईहा ज्ञान में प्रविष्ट हुए अर्थात् उस महास्वप्न का चिन्तवन फिर उन्होंने ईहाज्ञान से किया (पविसित्ता अप्पणोसाभाविएणं मइ पुव्वएणंबुद्धि विष्णाणे णं तस्स सुमिणस्स अत्थोग्गहं करेइ) ईहा ज्ञान से जब वे उस महास्वप्न का विचार कर चुके तब फिर अपने स्वाभाविक गतिपूर्वक बुद्धि विज्ञानद्वारा उस महा स्वप्न के अर्थ का उन्होंने निर्णय किया। सूक्ष्म धर्म के आलोचनरूप जो मानसिक व्यापार होता है उसका नाम मति है। तथा गृहीत अर्थ के परिचछेद पूर्वक जो विशिष्ट क्षयोपशम होता है और उस क्षयोपशम से जो उपयोग विशेष होता है उसका नाम बुद्धि विज्ञान है। (करित्ता) इम विचार करके (धारिणी देवी ताहिं जाब हियय पल्हायणिज्जाहिं मिउमहुर. वियायु. (ओगिण्हित्ता) सामान्य विद्यार्थी माक्याज्ञान भव्य पछी (ईहं पविसइ) ते सह ना प्यायन त२३ सालभु५ यता छडाज्ञानमा प्रविष्ट थया, अर्थात् ते मडा स्वभनु तिन तेमान्ये हा ज्ञान५ ७यु. (पविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुष्चएणं बुद्धिविण्णाणे णं तस्स सुमिणस्स अत्थोग्गहं करेइ) ज्ञानવડે જ્યારે તેઓએ તે મહાસ્વમ વિષે વિચાર કરી લીધું ત્યારે ફરી પિતાની સહજ મતિપૂર્વક બુદ્ધિ વિજ્ઞાનવડે તે મહાસ્વપ્નના અર્થને નિર્ણય કર્યો. સૂક્ષ્મ ધર્મની આલોચનારૂપે જે માનસિક વ્યાપાર હોય છે, તે મતિ છે. તેમજ ગ્રહણ કરાયેલા અર્થના પરિછેદપૂર્વક જે વિશિષ્ટ પશમ થાય છે, અને તે ક્ષપશમવડે જે उपयोn विशेष हाय छेते भुद्धिविज्ञान छे. (करिता) माशते वियारीने (धारिणी देवीं ताहिं जाव हिययपल्हायणिज्जाहिं मिउमहुररिभिय गंभीरसस्सिरीयाहिं શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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