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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका. सू. ६ धारिणीदेवीस्वप्नस्वरूपनिरूपणम् ९९ मलय-नवतक-कुशक्तलिम्ब-सिहकेशर प्रत्यवस्तृते अस्तरजस्कैः अपगतस्जःकणैः निर्मलैः मलय नवतक-कुशक्त लिम्बसिंह केशरैरास्तरणविशेषैः अवस्तृ ते क्रमेणाच्छादिते, तत्र मलयदेशोत्पन्न सूक्ष्ममूत्रनिर्मित आस्तरणविशेषः, नवतका विशिष्टोर्णा निर्मितः, कुशक्तः देशविशेषोत्पन्न:, लिम्ब-लघुवयस्कोरभ्रलूनोर्णानिर्मितः, सिंह के शरः सिंहसटासदृशो जटिलः 'गलिचा' इति भाषायाम् एतेषामितरेतर. द्वन्द्वः । 'सुविरइयरयत्ताणे' सुविरचितरजस्त्राणे-मु-सुष्ठु सम्यगरूपेण विरचितं= विस्तारितं रजस्त्राणं रजोनिवारक उपरितनाच्छादन विशेषो यस्मिन् तेतथा तस्मिन् 'रत्तंसुयसंवुए' रक्तांशुकसंवृते दंशमशकनिवारकरक्तवस्त्रावते 'मच्छरदानी' इति भाषायाम्, 'सुरम्मे' सुरम्ये मनोरमे। 'आइणगरूय बूरणवणीयतुल्फासे' आमलय से, नवतक से, कुशक्त से, लिम्ब से, एवं सिंह केशर से जो क्रमश ढकी हुइ है। मलयदेशोत्पन्न सूक्ष्मडोरों से निर्मित वस्त्र का नाम मलय है। विशिष्ट प्रकार की ऊन से बने हुए वस्त्र का नाम नवतक है। देश विशेष में बने हुए वस्त्र का नाम कुशक्त है। सिंह सटाके सदृश जटिल वस्त्र का नाम सिंह केशर है। इसे हिन्दी में गलीचा कहते हैं। ये सब वस्त्र उसके ऊपर एक २ करके तरा ऊपर बिछे हुए थे। (मुविरइयरयत्ताणे) धूली आकार सेज को मलिन न करदे इस ख्याल से उसके ऊपर एक और धूलिनिवारक वस्त्र बिछा हुआ था। (रत्तंसुयसंवुए) सोने वाले को दंश मंशक बाधा न पहुँचासके इसलिये उस शय्या पर लालरंग की एक मच्छरदानी भी तनी हुई थी। (सुरम्मे) यह शय्या बडी सुन्दर होने के कारण मनको हरण करनेवाली थी। (आइणकेसर पच्चुत्थए अनुठभे २ शय्या धूण पाना भराय नवतपुशत લિમ્બ અને સિંહ કેશરવડે આવેષ્ટિત થયેલી છે. મલય દેશમાં ઉત્પન્ન થયેલા ઝીણ દોરાઓ વડે બનાવવામાં આવેલા વસ્ત્રનું નામ “મલયજ છે. વિશેષ પ્રકારના ઊન વડે બનાવવામાં આવેલા વસ્ત્રનું નામ “નવતક છે. એક દેશ વિશેષમાં બનાવવામાં આવેલા વસ્ત્રનું નામ કુશકત છે. સિંહ સટાના જેવા જટાવાળા જટિલ વસ્ત્રનું નામ સિંહ કેશર છે. એને ફારસીમાં “ગલી” કહે છે. આ બધા વસ્ત્રો તેના ઉપર એક ઉપર मे पाथवाभा मावेत तi. (मुविरइयरयत्ताणे) धूथी से०४ भासन न ७ तय सेना भाटे मे oileg निवा२४ १२ ढinwi मावे तु. (रत्तंसुयसंबुए) સૂઈ જનારને ડાંસ-મચ્છર બાધિત ન કરે એટલા માટે તે સેજ ઉપર લાલરંગની એક भ२७२हानी ५ ताणसी उती. (मुरम्म) म०१ स२स वाथी मा शय्या भनने माप नारी ती. (आइणगसूयबूरणवणीय तुल्लफासे) १२ वोरेना यामाथी શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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