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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका स. ६ धारिणीदेवीस्वप्नस्वरूपनिरूपणम् ८९ युतिगुणैः-द्युतिभिः स्वस्य सर्वदिक प्रसरच्चाकचिक्यप्रकाशपुञ्जरूपाभिः कान्ताभिः, गुणैः सौन्दर्यादिभिः 'सुरवरविमाण वेलंविए' सुरवरविमानविडम्बकेसुरवरविमानस्य महदिकदेवविमानस्यापि विडम्बकं-विडम्बनाजनकं तिरस्कारकर-मित्यर्थः, तस्मिन्, स्वकीयपरमशोभया विमानतोऽप्युत्कर्षतया वर्त माने-इतिभाव', एतादृशे 'वरघरे' वरगृहे रम्यमासादे । अथ शय्यावर्णनमाह'तसि' इत्यादि, 'तंसि' तस्मिन् वक्ष्यमाणगुणयुक्ते 'तारिसगंसि' तादृश के पूर्वोपार्जितपरमपुण्यप्रकर्षवताप्राणिनामुचिते 'सयणिज्जं सि' शयनीये-शय्यायाम्, कीदृशे शयनीये ? इति विशेषणान्याह-'सालिंगणटिए' इत्यादि, 'सालिगणवहिए' सालिङ्गनवर्तिके-आलिङ्गनवतिः शरीरप्रमाणोपधानं, तया सह वर्त्तते यत्तत्सालिगनबत्तिक, तस्मिन शरीरममाणायतोपधानसहिते । 'उभओ बिब्बोयणे' उभयतो विब्बोयणे-उभयत-शिरश्चरणस्थापनस्थानद्वये 'बिब्बोयणे' इतिदेशीयशब्दः उपधानार्थकस्तेन बिब्बोयणे उपधाने यत्र तत्तस्मिन् उपर्यधउपधानमण्डिते, अत एव 'दुही उन्नए' द्विधात उन्नते-द्विधात मस्तकभागे चरणभागे च उन्नते= और क्या कहें (जुगुणेहिं सुरवरविमानवेलंविए) यह शयनागार अपने सर्व दिशाओं में फैले हुए चाक चिक्यप्रसारीरूप पुंजद्वारा तथा सौन्दर्य आदि गुणों द्वारा महर्द्धिक देव विमान की भी तिरस्कार कर रहा था अर्थात् जो अपनी परम शोभा से देवों के विमान से भी अधिक शोभा वाला है ऐसे शयनागार में) (तारिसगंसि) पुण्यवान के सोनेलायकशय्या में (तंसि) उस (सयणिज्जसि) शय्या पर (शय्या का वर्णन इस प्रकार है) (सालिंगणवट्टिए) कि जो शरीरकी लंबाई के बराबर लंबे तकिया से युक्त है (उभओ बिब्बोयणे) तथा जिसके दोनों तरफ-शिर और पौरों की तरफ-दो तकिये और छोटे २ रखे हुए हैं इस लिये जो (दुहओ उन्नए) भाटे यारे शु. ४डीये. (जुइगुणेहि सुरचरं विमानलंबिए) मा शयना॥२ मधी દિશાઓમાં ચેરમેર પ્રસરેલા ચમકતા પ્રકાશ પુંજથી તેમજ સૌંદર્ય વગેરે પિતાની વિશેષતાઓથી મહર્લિંક [બહુજ કીંમતી દેવ વિમાનની પણ અવગણના કરતું હતું. અર્થાત્ તે પિતાની પરમ શેભાથી દેવાના વિમાને કરતાં પણ વધારે સુંદર શોભતું હતું. એવા शयनागारमा (तारिसगंसि) पुष्यशासीमाने शयन योग्य शय्यामा (तसि) ते (सयणिज्जंसि) शय्या ५२-सूध २ही हुती. ( शय्यानु वाणुन प्रमाणे छ.) (सालिंगणवहिए) से शरी२नी माना प्रभाशुना मोशीवाजी छे, (उभओ बिब्बोयणे) मने रेमनी मन्ने मालूमे-माथा मने पानी त२५-नाना पाशी: भूदां छे, मेथी (दहओ उन्नए) भन्ने माथी अन्य छे. अने (मज्झे શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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