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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३० ७.१ सू०१ जीवानां कर्मबन्धकारण निरूपणम् ६३
भावः । मिच्छादिट्ठी जहा कण्हपक्खिया' मिथ्यादृष्टयः कृष्णपाक्षिकवत् मो क्रियावादिनः किन्तु अक्रियावादिनोऽपि अज्ञानिकवादिनोऽपि वैनयिकवादिनोऽपि - भवन्तीति ! 'सम्मामिच्छादिट्ठी णं पुच्छा' सम्यग्मिथ्यादृष्टयो मिश्रहृष्टयः किं क्रियावादिनोऽक्रियावादिनोऽज्ञानिकवादिनो वैनयिकवादिनो वा भवन्तीति प्रश्नः वृच्छया संगृह्यते, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'नो किरियावाई' नो क्रियावादिनः नो वा अक्रियावादिनो भवन्ति किन्तु 'अन्नाणियवाई बि discard fa' अज्ञानिकवादिनोऽपि भवन्ति वैनयिकवादिनोऽपि भवन्ति, मिश्रदृष्टयोहि जीवाः साधारणपरिणामत्वान्नो आस्तिका न वा नास्तिकाः किन्तु अज्ञानिकवादिनोऽषि वैनयिकवादिनोऽपि भवन्तीति भावः । 'नाणी जाव केवल - नाणी जहा अलेस्से' ज्ञानिनो यावत्केवलज्ञानिनो हि अलेश्यजीववदेव क्रियावानहीं होते हैं । 'मिच्छादिट्ठी जहा कण्हपक्खिया' मिथ्यादृष्टि जीव कृष्णपाक्षिक के जैसे क्रियावादी नहीं होते हैं । किन्तु वे अक्रियावादी भी होते हैं, अज्ञानवादी भी होते हैं और वैनयिकवादी भी होते हैं। 'सम्मामिच्छादिट्टीणं पुच्छ।' हे भदन्त ! जो जीव मिश्रदृष्टि होते हैं वे क्या क्रियावादी हैं ? या अक्रियावादी होते हैं ? या अज्ञानवादी होते हैं ? या वैनयिकवादी होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं'गोमा ! नो किरियाबाई, नो अकिरियाबाई' हे गौतम! वे न क्रियावादी होते हैं और न अक्रियावादी होते हैं। किन्तु वे 'अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि' अज्ञानवादी भी होते हैं और वैनयिकवादी भी होते हैं । क्यों की मिश्रदृष्टि जीव साधारण परिणामवाले होते हैं इसलिये वे न आस्तिक होते हैं और न नास्तिक होते हैं । 'नाणी जाव केवलनाणी जहा अलेस्से' ज्ञानी जीव यावत् केवल ज्ञानी जीव अलेश्य जीव के 'मिच्छादिट्टी जहा कणहपक्खिया' मिथ्यादृष्टि वा दृष्ट्णुपाक्षिम्ना કથન પ્રમાણે ક્રિયાવાદી હેાતા નથી પરંતુ તેઓ અક્રિયાવાદી પણ હાય છે. અજ્ઞાનવાદી પણ હોય છે, અને વૈનિયકવાદી પણ હાય છે 'सम्मामिच्छादिट्ठीगं पुच्छा' हे भगवन् के लव मिश्रष्टषाणा होय छे, तेथे शुद्ध द्वियावाही હાય છે ? અથવા અક્રિયાવાદી હાય છે ? અથવા અજ્ઞાનવાદી હૈાય છે ? અથવા વૈયિકવાદી હૈાય છે ? આ प्रश्नमा उत्तरमां प्रभुश्री हे छे ! 'गोयमा नो किरियावाई नो अकिरियावाई' हे गौतम! तेथे प्रियावाही होता नथी. तथा मडियावाही पशु होता नथी 'अन्नाणियवाई वि वेणईयवाई' तेथे अज्ञान વાદી પણ હાય છે, અને વૅનિયકવાદી પણ હાય છે, કેમ કે મિશ્રર્દષ્ટિવાળા वो साधारण परिशुभवाणा होय छे. 'नाणी जाव केवलनाणी जहा अलेस्से'
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭