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________________ भगवतीसूत्रे 'णो इणडे समडे नायमर्थः समर्थः देवा एते तेनैव भवग्रहणेन न सिद्धयन्ति देवानां सिद्धयमावादिति भावः । 'सेव भंते ! सेव भंते ! त्ति' तदेव' भदन्त ! तदेवं भदस्त ! इति कथयित्या 'भगव' गोयमे भगवान् गौतमः 'समणं भगवं महावीर' श्रमणं भगवन्तं महावीरम् ‘तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ' विकृत्वः -बिया. रम् आदक्षिणं प्रदक्षिणं करोति, 'करेत्ता' कृत्वा 'वंदइ नमंसई' बन्दते नमस्यति' वंदित्ता नमंसिता' वन्दित्वा नमस्यित्वा एवं क्यासी' एवम्-वक्ष्यमाणमकारेण अवादी-'एवमेयं भंते' एवमेतद् भदन्त ! यद् देवानुपियेण कथितं तत् एवमेव 'तहमेयं भते !' तथ्य-सत्यमेतद् भदन्त ! 'अवितहमेयं भंते ! अवितथमेतद् भदन्त ! प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'णोइणढे सम?' हे गौतम! यह अर्थ समर्थित नहीं हुआ है। क्योंकि जो देव होते हैं वे इसी भवग्रहण से सिद्ध नहीं होते हैं देवों के सिद्धि का अभाव रहता है। 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! जैसा आपने यह कहा है वह सब सर्वथा सत्य ही है । इस प्रकार कहकर 'भगवं गोयमे भगवान् गौतमने 'समणं भगवं महावीरं श्रमण भगवान् महावीरको 'तिक्खुत्तो आयाहिणं पया. हिणं करेइ' तीन चार आदक्षिण प्रदक्षिण किया। 'करेत्ता वंदइ, नमंसई' आदक्षिण प्रदक्षिण करके वन्दना की, नमस्कार किया। 'वंदित्ता नमः सित्ता' बन्दना नमस्कार कर फिर उन्होंने प्रभुश्री से 'एवं वयासी' ऐसा कहा 'एवमेयं भते ! तहमेयं भंते ! 'अवितहमेयं भते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भते ! 'हे भदन्त ! जैसा मावेस छे, म प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री गौतमस्वाभान ४ छ है-'णो इणदे समटे गौतम ! । मथ ५२।१२ नथी. भ १-२ सय हाय छे.तसा આજ ભવગ્રહણથી સિદ્ધ થતા નથી. સક્રિયેન-સિદ્ધિની પ્રાપ્તિનો અભાવ રહે છે. सेव' भते ! सेव भते । त्ति' हे भगवन् मा५ हेवानुप्रिये २ प्रभा ४थन કરેલ છે, તે સઘળું કથન સર્વથા સત્ય જ છે. હે ભગવન્ આપી દેવાનુપ્રિયનું सणु थन सपथा सत्य छे. या प्रमाणे ४डीने 'भगव गोयमे' सपा गौतमत्वामी 'समण' भगवं महावीर” श्रम भवान महावीरने 'तिक्खुतो आयाहिण पयाहिण करेइ' अपार माक्षिण प्रक्षि। 30 'करे ता वंदइ नमसइ' साक्षिा प्रक्षिा नवनाशनमः॥२ . 'वदित्ता नमंसिचा' पहना नमः।२ ४रीने तमामे प्रभुश्रीन एवं वयासी' २॥ प्रमाणे । एवमेय भंते तहमेय भंते ! अवितहमेय भाते! असंदिद्धमेय भते ! इच्छियमेयं भंते ! पडि. च्छियमेय भते ! ३ मावन मा५ वानुप्रिये २ प्रमाणे ४ छे, ते सघणु थन શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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