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SCIRBARE
भगवतीने 'जहा' इत्यादि, 'जहा कण्हलेस्साए चत्तारि उद्देसगा भवति' यथा कृष्णलेश्या प्रकरणे एतस्यैव शतकस्य पश्चमाधुद्देशकेषु चत्वार उद्देशका भवन्ति 'तहा इमे वि' तथा-तेनैव प्रकारेण इमेऽपि । 'कण्हलेस्स भवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्देसगा कायना' कृष्णलेश्य भवसिद्धिक नैरयिकादिकैरपि कृष्णलेश्य भवसिद्धिक कृतयुग्म कृष्णलेश्य भवसिद्धिक ज्योज भासिद्धिक कृष्णलेश्य द्वापरयुग्म कृष्णलेश्य भवसिद्धिक कल्योज रूपा चत्वार उद्देशकाः कर्तव्या इति
प्रयस्त्रिंशत्तमात् षट्त्रिंशत्तमपर्यन्तोद्देशका समाप्ताः ॥३३-३६॥ क्या वे नैरयिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं अथवा यावत् देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसका पूर्वातिदेश से उत्तर देते हुए प्रभुश्री गौतम से कहते हैं-'जहा कण्हलेस्साए चत्तारि उहेसगा भवंति' हे गौतम ! इसी शतक के पंचमादि चार उद्देशकों में जिस प्रकार से बताये गये हैं 'तहा इमे वि' उसी प्रकार से ये 'कण्हलेस्स भवसिद्धिए हि वि चत्तारि उद्देसगा कायव्या' कृष्णलेश्य भवसिद्धिक नैरयिकादि जीवों के साथ भी चार उद्देशक बना लेना चाहिये। जैसे-कृष्णलेश्य कृतयुग्म भवसिद्धिकोदेशक १, कृष्णलेश पोज भवसिद्धिकोद्देशक २, कृष्णलेश्य द्वापरयुग्म भवसिद्धिकोद्देशक ३, और कृष्णलेश्य कल्योज भवसिद्धिकोद्देशक ४ इस प्रकार से राशियुग्म में कृष्णलेश्य भवसिद्धिक नैरधिकों के सम्बन्ध में ये चार उद्देशक हो जाते हैं । इस प्रकार ३३ वें उद्देशक से लेकर ३६ वें उद्देशक तकके ४ उद्देशक ४१ वे शतक में समाप्त हुए । ४१, ३३-३६। ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા દેવમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે 'जहा कण्हलेस्साए चत्तारि उद्देसगा भवंति' गौतम ! An inीस शतना पायमा अदृशामा २ प्रमाना या२ देशाम। मा०या छ, 'तहा इमे बि' ४ प्रमाणे मा 'कण्हलेस भवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्देसगा कायव्या' वेश्यावाण सिद्धि नै२४ वानी समयमा ५५ यार ઉદેશાઓ કહેવા જોઈએ. જેમ કે કૃષ્ણલેશ્યાવાળા કૃતયુગ્મ ભવસિદ્ધિક નૈરચિકેના સંબંધમાં પહેલે ઉદ્દેશ ૧ કૃષ્ણલેશ્યાવાળા જ ભવસિદ્ધિક ઔરચિકેના સંબંધમાં બીજો ઉદ્દેશે ૨ કૃષ્ણલેશ્યાવાળા દ્વાપરયુગ્મ ભવસિદ્ધિક નરયિકના સંબંધમાં ત્રીજે ઉદ્દેશ ૩ અને કૃષ્ણલેશ્યાવાળા કાજ ભવસિદ્ધિક નૈરયિકના સંબંધમાં ચેશે ઉદ્દેશ ૪ આ રીતે રાશિયુગ્મમાં કૃષ્ણલેશ્યાવાળા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૭