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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३० उ.१ सू०१ जीवानां कर्मवन्धकारणनिरूपणम् ५१ अथ त्रिशत्तमं शतकभारमते व्याख्यातमेकोनत्रिशत्तमं शतकम् क्रमप्राप्त त्रिंशत्तमं शतकमारभते, अस्य च पूर्वशतकेनायमभिसम्बन्ध:-पूर्वशतके कर्मप्रस्थापनामाश्रित्य जीवा विचारिताः अत्र तु त्रिंशत्तमे शसके कर्मबन्धादिकारणस्वरूपवस्तुवादमाश्रित्य जीवा एव विचार्यन्ते, तदनेन सम्बन्धेन आयातस्यास्थ त्रिंशत्तमशतकस्य द्वादशोदेशका. त्मकस्येदं प्रथमोदेशका दिमूत्रम्-'का णं भंते' इत्यादि । ___मूलम्-कइणं भंते ! समोसरणा पन्नत्ता ? गोयमा! चत्तारि समोसरणा पन्नत्ता, तं जहा किरियावाई१, अकिरियावाई२, अन्नाणिय वाई३, वेणइयवाई४। जीवा णं भंते! किं किरियावाई अकिरियावाई अन्नाणियवाई वेणइयवाई ? गोयमा ! जीवा किरियावाई वि, अकिरियावाई वि, अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि सलेस्साणं भंते! जीवा किं किरियावाई पुच्छा, गोयमा ! किरियावाई वि, अकिरियावाई वि, अन्नाणियवाई वि, वेगइयवाई वि४। एवं जाब सुक्कलेस्सा। अलेस्साणं भंते ! जीवा पुच्छा, गोयमा! किरियावाई, नो अकिरियावाई नो अन्नाणियवाई नो वेणइयवाई। कण्हपक्खियाणं भंते ! जीवा किं किरियावाई पुच्छा, गोयमा ! नो किरियावाई अकिरियावाई अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि। सुक्खपक्खिया जहा सलेस्सा। सम्मादिट्ठी जहा अलेस्सा। मिच्छादिट्ठी जहा कण्हपक्खिया। सम्मामिच्छादिट्ठी णं पुच्छा, गोयमा! नो किरियावाई नो अकिरियावाई अन्नाणियवाई वि वेणइयवाई वि। नाणी जाव केवलनाणी जहा अलेस्सा। अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया। आहारसन्नोवउत्ता जाव परिग्गहसन्नोवउत्ता जहा सलेस्सा।नो सन्नोवउत्ता जहा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭.
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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