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________________ ७५४ भगवतीसूत्रे सिद्धयन्ति बुद्धयन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदुः खाना मन्तं कुर्वन्तीति प्रश्ना, उत्तरमाह-'हंता' इत्यादि, 'हंता सिझति जाव अंत करें ति' हन्त गौतम ! इत्थं भूता मनुष्याः सिद्धयन्ति बुद्धयन्ते मुच्यन्ते परिनिर्वान्ति सर्वदुःखानामन्तं चकुइन्स्येवेति । 'जइ सलेस्सा कि सकिरिया अकिरिया' हे भदन्त ! ते मनुष्या यदि सलेश्याः तदा किं सक्रिया भवन्ति अक्रिया वा भवन्तीति प्रश्नः भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सकिरिया नो अकिरिया' ये सलेश्यास्ते सक्रिया एव भवन्ति नो अक्रिया भवन्ति, इति । 'जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझति जाव अन्तं करेंति' यदि ते सक्रियाः तदा कि तेनैव भवग्रहणेन सिद्धयन्ति यावत्सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्तीति प्रश्ना, भगवानाह -'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! 'अस्थेगइया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव अंत करेंति पद से युद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वात होते हैं और सर्व दुःखों का (अन्त करते हैं) इन पदों का ग्रहण हुआ है। उत्तर में प्रमुश्री करते हैं-'हंता, सिझंति जाव अंत करेंति' हा गौतम ! वे उसी भव से सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं । 'जइ सलेस्सा सिकिरिया अकिरिया' हे भदन्त ! यदि वे सलेश्य होते हैं तो क्या सक्रिय होते हैं अथवा अक्रिय होते है ? 'गोयमा ! सकिरिया नो अकिरिया' हे गौतम! वे सक्रिय होते है अक्रिय नहीं होते हैं। 'जह सकिरिया तेणेव भवग्गहणेण सिझति जाव अंत करेंति' यदि वे सक्रिय होते है तो क्या वे उसी भव से सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं ? 'गोधमा ! अत्थेगइया तेणेव भवग्गहणेण सिज्झति, जाव સિદ્ધ થાય છે, યાવત્ અંત કરે છે? અહિયાં યાવત્પદથી બુદ્ધ થાય છે? સુત થાય છે ? પરિનિર્ગત થાય છે અને સર્વ દુઃખેને અંત કરે છે? આ પરાનો સંગ્રહ થયેલ છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે -हेता ! सिज्ञति जाव अंत करें ति' । गौतम ! तसे। मे ममा सिद्ध छ. यावत् सघाएन। मत ४२ छ 'जइ मलेस्ता कि सकिरिया किरिया' भगवन् नेता वेश्यावाणा हाय छे तो शुतमे। प्रठियકિયા સહિત હોય છે? અથવા અક્રિય-કિયા વિનાના હોય છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી छ -'गोयमा! सकिरिया नो अफिरिया' 3 गौतम ! तया जिया सहित उप. याविनाना 3ाता नथी. 'जइ सकिरिया तणेव भवग्गहणेण सिज्ज्ञति, जाव अत करेति' लेते। लिया सहित डाय छे, तो शु ते। मे। ભવમાં સિદ્ધિ થઈ જાય છે? યાવત્ સઘળા દુઃખને અંત કરે છે ? ઉત્તરમાં असश्री छे -'गोयमा ! अत्थेगइया तेणेव भवग्गहणेण सिज्झति, जाव શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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