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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०४१ ७.२ राशियुग्मनिरूपणम् ७१३ संयममपि उपजीवन्ति ते मनुष्याः तथा-आत्मनोऽयशः असंयममपि उपजीवन्तीति 'जइ आयज उवजीवंति कि सलेस्सा अलेस्सा' यदि ते मनुष्या आत्मयशः आत्मनः संयममुपजीवति तदा किं ते सलेश्या लेश्यासहिताः किं वा अलेश्या:लेश्य रहिता वा भवन्तीति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे afar | 'सलेस्सा वि अलेस्सा वि' सलेश्या अपि भवन्ति अश्या :- लेश्यारहिता अपि भवन्ति । 'जह अलेस्सा किं सकिरिया अकिरिया' यदि सलेश्या भवन्ति तदा किं ते मनुष्याः सक्रिया भवन्ति अक्रियाः - क्रियारहिता वा भवन्तीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो सकिरिया अकिरिया नो सक्रिया भवन्ति, किन्तु अक्रिया भवन्तीति । 'जइ अकिरिया तेणेव भवग्गह णेणं सिज्झति जाव अंत करें ति' यदि ते मनुष्याः अक्रियाः तदा किं तेनैव भवग्रहणेन आश्रय करते हैं ? 'गोयमा ! आयजस' वि उथजीवंति आय अजसंपि जीवंति ' हे गौतम ! वे आत्म संयमका भी आश्रय करते हैं और आत्म असंयम का भी आश्रय करते हैं । 'जइ आयजसं उवजीवंति किं सलेस्सा अलेस्सा' हे भदन्त ! यदि वे आत्म संयम का आश्रय करते हैं तो क्या वे सलेशन होते हैं अथवा अलेश्य होते हैं ? 'गोयमा ! सलेस्सा वि अलेस्सा वि' हे गौतम! वे सलेश्य भी होते हैं और अलेश्य भी होते हैं । 'जइ अरसा किं सकिरिया, अकिरिया' यदि वे अलेश्य होते हैं तो वे क्या क्रिया सहित होते हैं ? अथवा क्रिया रहित होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोधमा ! नो सकिरिया अकिरिया' वे सक्रिय नहीं होते हैं किन्तु अक्रिय होते हैं। 'जइ अकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति जाव अंत करेंति' हे भदन्त ! यदि वे अक्रिय होते हैं तो क्या वे उसी भवसे सिद्धिक होते हैं यावत् अन्त करते हैं? यहां यावत् अनुश्री छे - 'गोयमा ! आयजस वि उवजीवति आय अजस वि उवजीवति' હું ગોતમ ! તે આત્મ સયમના પણુ આશ્રય કરે છે. અને आत्म असंयमना पशु माश्रय रे छे. 'जइ आयजस्रं' उवजीवति किं सलेस्सा अलेस्सा' हे भगवन् ले तेथे आत्म संयमनी आश्रय पुरे छे, तो શું તે લેશ્યાવાળા હાય છે ? અથવા વૈશ્યા વિનાના હોય છે ? ઉત્તરમાં प्रभुश्री छे - 'गोयमा ! सलेस्सा वि अलेस्सा वि' हे गौतम! तेथे बेश्या वाजा पशु होय छे, अने सेश्याविनाना पशु होय छे, 'जइ अलेस्सा कि किरिया अकिरिया' ले तेथे। बेश्याविनाना होय छे, है। शु डिया सहित हाय छे ? } दिया विनाना हेय छे ? उत्तरमा प्रभुश्री डे है-'गोयमा ! नो सकिरिया अकिरिया' तेथे। प्रियावाणा होता नथी पशु अडिया-डिया विनाना होय छे. 'जह अकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं खिज्झति जाव अतकरेति ' હું ભગવન્ જો તેઓ ક્રિયા વિનાના હાય છે, તે શું તેએ એજ ભવમાં भ० ९० શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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