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________________ भगवतीसूत्रे 'गोयमा' हे गौतम ! 'जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अबहीरमाणे चउपज्जवसिए सेत्तं रासीजुम कडजुम्मे' यः खलु राशिश्वतुः समुदायरूपश्चतु केणापहारेणापहिय माणश्चतुष्पर्यवसितः सोऽयं राशियुग्मकृतयुग्म इति कथ्यते। 'एवं जाव जे गं रासिच उक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए सेत्तं रासिजुम्मकलिओगे' एवं यावद् यः खलु राशिश्चतुष्केणापहारेणापहियमाण एकपर्यवसितो भवति सोऽयं राशियुग्म कल्योजः अत्र यावत्पदेन यः खलु राशिश्चतुष्केणापहारेणापहियमाणे स्त्रिपर्यवसितो भवति सोऽयं राशियुग्म योजः २, यः खलु राशिचतुष्केणापहियमाणो द्विपर्यवसितो भवति सोऽयं राशियुग्म द्वापरः ३, इत्यनयोः संग्रहो भवति इति । 'से तेणठे भंते ! जाव कलिओगे' तत्तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते कल्योज पर्यन्त राशियुग्म चार कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपन्ज. वसिए सेत्तं रासीजुम्म कडजुम्मे' हे गौतम ! जो राशि चार से विभक्त होती हुई अन्त में चार बचाती है ऐसा वह राशि कृतयुग्मराशि कही गई है। एवं जाव जेणं रासि चउक्कएणं अवहारेणं अव. हीरमाणे एगपज्जवसिए सेत्तं रासिजुम्म कलि भोगे' इसी प्रकार यावत् जो राशि चार से विभक्त होती हुई अन्त में एक बचाती है वह राशि युग्म कल्शेज कहा गया है। यहां यावत्पद से 'जो राशि चार से विभक्त हा अन्त में तीन बचानी है वह राशियग्म योज है। तथा जो राशि चार से विभक्त होती हुई अन्त में दो बचाती है वह राशियुग्म द्वापरयुग्म है' इन दोनों का संग्रह हुभा है। સુધીના રાશિ યુએ ચાર કહ્યા છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'गोयमा! जे ण रासी च उक्कएण अबहारेण अवहीरमाणे चउपज्जवसिए सेत्तं गसिजुम्म कलिओगे' हे गीतम! २ २शि साथी पयामा मातi व थर अयेतशिने तयुग्म २॥शि वामां भाव छे. 'एव जाव जे ण रासि चउक्कएण अवहारेण अवहीरमाणे एगपज्जवसिए से त्तरासि जम्म कलिओगे' मा प्रमाणे यावत् २ राशिने यारथी पयामा આવતાં છેવટે એક વધે છે તે રાશિ યુગ્મને કાજ કલ્યોજ શશિયુગ્મ કહેવાય છે. અહિયાં યાવત્પદથી “જે રાશિ ચારથી વહેંચાઇને છેવટે ત્રણ બચાવે છે, તે રાશિયમ એજ” છે, તથા જે રાશિ ચારથી વહેંચાઇને છેવટે બે બચાવે शियुम ५२युभराशि छे. मा भन्नेन सह थये छ. 'से तेण टेण जाव कलिओगे' माथी छ गौतम ! मेमे बुले-शिशुभ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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