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________________ ५८४ भगवती सूत्रे 1 'जहा ओहियस सत्र' यथा एतस्यैव शतकस्यधिकशतं प्रथमशतं तथैव - प्रथम शतकवदेव सर्व प्रश्नोत्तरादि ज्ञातव्यम् । औधिकशतापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तद्दर्शयति'नवरं' इत्यादिना - 'नवरं एक्कारससु वि उद्देमएस' नवरमेकादशस्त्रपि उदेशकेषु 'अह भंते ! सब्वे पाणा जाव सब्वे सत्ता' भदन्त ! सर्वे पाणा यावत् सर्वे सच्चाः यावत्पदेन भूतजीवयोः संग्रहो भवति 'भवसिद्धिय कडजुम्मकडजुम्म एर्गिदिवत्ताए उववन्नपुश' भवसिद्धिककृत युग्मकृतयुग्मकेन्द्रियतया उत्पन्नपूर्णः हे भदन्त ! सर्वे प्राणजीवभूतसत्राः मवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्मैकेन्द्रियतया किं पूर्व समुत्पन्ना इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'नो इट्ठे समट्टे' नायमर्थः समर्थः सर्वे जीवाः नोत्पपूर्वा एतादृशै केन्द्रियतयेति के उत्पन्न होते हैं ? अथवा देवों में से आकर के उत्पन्न होते है ? इस प्रश्न का अतिदेश द्वारा उत्तर देते हुए प्रभुश्री गौतमस्वामी से कहते हैं- 'जहा ओहियसयं तहेव' हे गौतम! जैसा औधिक शतक मेंइसी शतक के प्रथम शतक में कहा गया है-वैसा ही सब प्रश्न और उत्तर के सम्बन्ध में यहां कथन जानना चाहिये । 'नवर' एक्कार ससु वि उद्देसएस अह भंते! सव्त्रे पाणा जाव सव्वे सत्ता भवसिद्धिय कडजुम्न कडजुम्म एनिंदियत्ताए उनपुवा' परन्तु औधिक शतक की अपेक्षा जो भिन्नता यहां है यह ऐसी है - 'हे भदन्त ! क्या समस्त प्राण यावत् सव भरसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म राशिप्रति एकेन्द्रिय रूप से पहिले उत्पन्न हो चुके हैं ? तो इस पर प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा जो इट्टे समट्टे' हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है । अर्थात् समस्त મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા દેવેશમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના અતિદેશ દ્વારા ઉત્તર આપતાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને उडे छे !-'जहा ओहियसय' हे गौतम! मौधिः शतम्मां भेटते हैं या शतना પહેલા શતકમાં જે રીતે કથન કરવામાં આવેલ છે, એજ પ્રમાણેનું કથન પ્રશ્ન मने उत्तर३५ सघणु उथन मडियां अहेवु' लेडो, 'नवर' एक्कारखसुवि उद्देवपतु अह भते ! सव्वे पाणा जान सव्वे सत्ता भवसिद्धिय कडजुम्म कडजुम्म एगि दत्ताए उववन्नपुव्वा' परंतु सोधि शतना उथन ४२तां या अथनभां જે ભિન્તપણું છે, તે એવું છે કે-‘હે ભગવન શુ' સઘળા પ્રાા યાવત્ સઘળા સત્ત્વા ભવસિદ્ધિક કૃયુગ્મ કૃતયુગ્મ રાશિવાળા એકેન્દ્રિય પણાથી પહેલાં ઉત્પન્ન थर्म यूज्या हे ? या प्रश्नमा उत्तरभां प्रभुश्री गौतमस्वामीने उडे छे - 'गोयमा ! जो इट्टे समट्टे' हे गौतम! या अर्थ भराभर नथी, अर्थात् सबजा आयु શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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