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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३५ उ.१९०३ पञ्चदशभेदनिरूपणम् ५३३ कथितं तथैव यावत् अनन्तकृत्व इति २। 'कडजुम्म दावरजुम्म एगिदिरणं भंते ! कमोहितो उववज्जति' कृतयुग्म द्वापरयुग्मै केन्द्रियाः खलु भदन्त ! कुत उत्पद्यन्ते किं नैरयिकेभ्य इत्यादि प्रश्नः, उत्तरमाह-'उपचाओ तहेव' उपपातस्तथैव-पूर्व कथितप्रकारेणैव । 'ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं पुच्छ।' ते खलु भदन्त ! कृतयुग्मद्वापरयुग्मैकेन्द्रियजीवा एकसमयेन कियन्त उत्पद्यन्ते इति प्रश्ना, उत्तरमाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'अट्ठारस वा, संखेना वा, असंखेना वा, अणंता वा उपवज्जत' अष्टादश वा, संख्याता वा, असंख्याता वा, अनन्ता 'कडजुम्म दावर जुम्म एगिदियाणं भंते ! कमोहितो उवज्जति' हे भदन्त ! कृतयुग्म द्वापरयुग्म राशिप्रमित एकेन्द्रियजीव किस स्थानविशेष से आकरके उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरपिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा तिर्यग्योनिको में से आकरके उत्पन्न होते है ? अथवा मनु. ज्यों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री गौतमस्वामी से कहते हैं'उववाओ तहेव हे 'गौतम ! इस सम्बन्ध में समस्त कथन पूर्व में जैसा कहा गया है वैसा ही जानना चाहिये। 'ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं पुच्छ।' हे भदन्त ये कृतयुग्म द्वापरयुग्म राशिप्रमित एकेन्द्रिय जीव एक समयमें कितने उत्पन्न होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! अद्वारस वा संखेजना वा असंखेज्जा वा अणंतावा' 'हे गौतम ! एक समय में १८ उत्पन्न होते है अथवा संख्यात अथवा असंख्यात अथवा अनन्त उत्पन्न होते है सेस तहेव जाब अणतखुत्तो' अवशिष्ट और त्या सुधा ही नये. 'कडजुम्म दावरजुम्म एगिदियाणं भंते ! क ोहितो उववज्जति' 8 सावन कृतयुद्वापरयुभ शिवाणा सन्द्रिय ७। ४या સ્થાન વિશેષથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? શું તેઓ નૈરયિકેમ થી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા તિર્યંચનિકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન थाय छ १ मा प्रश्न उत्तर प्रभुश्री ४ छ - उपवाओ तहेव गौतम! આ વિષયમાં સઘળું કથન પહેલાં જે પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે, એજ प्रमाणेनु सम४. 'ते ण भंते जीवा एगसमएणं पुच्छा' डे मन् मातયમ દ્વાપરયુગ્મ રાશિવાળા એકેન્દ્રિય જીવો એક સમયમાં કેટલા ઉત્પન્ન थाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रसुश्री गौतम स्वाभाने ४ छ -'गोयमा ! अदारस वा संखेज्जा वा अस खेज्जा वा अर्णता वा' 3 गौतम! तेमा સમયમાં ૧૮ અઢાર ઉત્પન્ન થાય છે, અથવા સખ્યાત અથવા અસંખ્યાત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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