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________________ भगवती सूत्रे ४६० देन तुल्यस्थितिकाः तुल्यविशेषाधिक कर्म प्रकुर्वन्ति अस्त्येक के तुल्यस्थितिका इत्यन्तस्य प्रकरणस्य संग्रहो भवतीति । 'उत्तरमाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'अतवनमा एगिंदिया दुबिहा पन्नता' अनन्तरोपपन्नका एकेन्द्रिया द्विविधाः प्रज्ञप्ताः - कथिताः 'तं जहा ' तद्यथा--' अत्थेगइया समाज्या antaran' अस्त्येक के अनन्तरोपपन्नका एकेन्द्रियाः समायुष्काः समोपपत्रकाः 'अत्थेमइया समाउया विसमोववन्नगा' अस्त्येकके समायुष्का विषमोपपन्नकाः आप किस कारण से कहते हैं कि कितनेक अनन्तरोपपनक एकेन्द्रिय जीव ऐसे होते हैं जो समान स्थितिवाले होते हैं और तुल्यविशेषाधिक ज्ञानावरणीयादि कर्मका बन्ध करते हैं ? और कितनेक अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव जो समान स्थितिवाले तो होते हैं पर वे भिन्न भिन्न विशेषाधिक कर्मका बन्ध करते हैं ? यहां यावत् पद से यही पाठ ग्रहीत हुआ है। इस सम्बन्ध में उत्तर देते हुए प्रभुश्री गौतम से कहते हैं'गोयमा ! अनंत रोवबन्नगा एगिंदिया दुबिहा पन्नन्ता' हे गौतम! अनन्तरोपपत्रक एकेन्द्रिय जीव दो प्रकार के कहे गये हैं । 'त' जहा' जैसे- 'अत्थेमइया समाज्या समोववन्नगा, अत्येगइया समाज्या विस मोववन्नगा' कितनेक अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव ऐसे होते हैं जो बराबर की आयुवाले होते हैं और साथ साथ उत्पन्न होते हैं । तथाकितनेक अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव ऐसे होते हैं जो बराबर की आयुवाले तो होते हैं पर वे भिन्न भिन्न समय में उत्पन्न हुए होते આપ એવું શા કારણથી કહેા છે? કે કેટલાક અન તરાપપનક એકઈન્દ્રિયવાળા જીવા એવા હાય છે, કે જેઓ સરખી સ્થિતિવાળા હોય છે. અને તુલ્ય વિશેષાધિક જ્ઞાનાવરણીય વિગેરે ક ના ખધ કરે છે? તથા કેટલાક અનતપપન્નક જીવ એવા હાય છે કે-જેએ સમાન સ્થિતિવાળા હોય છે, પરંતુ તેઓ જુદા જુદા વિશેષાધિક કના બંધ કરે છે ? આ પાઠ અહિયાં યાત્ર. પદથી ગ્રહણ કરવામાં આવેલ છે. આ પ્રશ્નનેઉત્તર આપતાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામી ने हुडे छे डे-‘गोयमा ! अनंत रोबवण्णा एति दिया दुविधा पण्णत्ता' हे गौतम! अन ंतशेपयन्नः श्रेऽऽन्द्रिय वा मे अहारना वामां आवे छे. 'त' जहा ' ते या प्रमाणे छे.- 'अत्थेगइया समाज्या समोववन्नगा अत्येगइया भ्रमाच्या विसमोववन्नगा, हैटला अनंतरापपन्नोऽवन्द्रियवाजा भवे। भेवा हाय છે કે જેઓ સરખી માયુષ્યવાળા હાય છે, અને એક સાથે જ ઉત્પન્ન થાય છે. તથા કેટલાક અન તરાપપનક એકઇન્દ્રિયવાળા જીવે એવા હાય છે કે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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