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________________ ४४० भगवतीने विशेषाधिकं कर्म कुर्वन्ति । अस्त्येकके तुल्यस्थितिका विमात्रविशेषाधिकं कर्म कुर्वन्ति, अस्त्येक विमात्रस्थितिका स्तुल्यविशेषाधिकं कर्म कुर्वन्ति इत्येषां संग्रहो भवतीत्यवान्तरप्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम | 'एगिंदिया चउन्त्रिहा पन्नत्ता' एकेन्द्रिया चतुर्विधाः मज्ञप्ताः 'वं जहा ' तद्यथा - ' अरथेमइया समाज्या समोववन्नगा' अस्त्येकके समायुष्काः समोपपन्नकाः समम्- तुल्यम् आयुर्वेषां ते समायुष्काः समानस्थितिका इत्यर्थः । ' अरथे गइया समाज्या विसमोघवन्नगा' अस्त्येक के समायुष्का:- तुल्यायुष्काः समोपपन्नकाः, 'अथेगइया विसमाज्या समोववन्नगा अत्थेगइया बिसमाउया विसमोववन्नगा' अस्त्येकके विषमायुका समोपपन्नकाः अरत्येकके विषमायुष्काः एकेन्द्रिय जीव भिन्न भिन्न विशेषाधिक कर्मका बन्ध करते हैं ? यहां यावत् पद से बीच के दो विकल्प गृहीत हुए हैं। इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा । एनिंदिया चडव्विहा पण्णत्ता' हे गौतम! एकेन्द्रिय जीव चार प्रकार के कहे गये हैं।' 'तं जहा' 'जो इस प्रकार से हैं'अश्येगइया समाज्या समोववन्नगा' एक वे एकेन्द्रिय जीव जो समान आयुवाले होते हैं और एक ही साथ उत्पन्न होते हैं। 'अत्थेगया समाया विसमोवबलगो' 'दूसरे वे एकेन्द्रिय जीव जो समान आयुवाले तो होते हैं पर एक ही साथ उत्पन्न नहीं होते हैं किन्तु भिन्न भिन्न समय में उत्पन्न होते हैं। तीसरे 'अस्थेइया विसमाउद्या सभोववन्नगा जश्येगइया विसमाज्या विसमो बनगा' 'वे एकेन्द्रिय जीव जो विषम आयुवाले तो होते हैं पर साथ साथ में एक समय में उत्पन्न होते हैं ३ | चौथे वे एकेन्द्रिय जीव जो જુદા વિશેષાધિક કમના અધ કરે છે ? અહિયાં યાવપુઢથી વચ્ચેના એ વિકલ્પે ગ્રહણ કરાયા છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે है- 'गोयमा ! पगिदिया चउव्विहा पण्णत्ता' हे गौतम! मे इन्द्रियवाजा लव यार प्रहारना अहेवामां आवे छे. 'त' जहा' ? भाप्रमाणे हे 'अत्थे या समाजा समोवन्नगा' मे ते ४ इन्द्रिय वा छे, भेथे सरभा આયુષ્યવાળા હોય છે. અને એક સાથે જ उत्पन्न थाय छे. 'अत्थेगइया समाBया समोववन्नगा' बील ते गोर्डेन्द्रिय वो होय हे हे हे। सरणी આયુષ્યવાળા તા હોય છે, પણ એક સાથે ઉત્પન્ન થતા નથી. પરંતુ જુદા लुहा सभये उत्पन्न थाय छे. 'अत्थेगइया विसमाज्या समोबवन्नगा' अत्थे गाविसमाया विषमोववन्नगा' भने श्रील ते मे द्रियवाणा भवेनेथेा વિષમ આયુષ્યવાળા તે હાય છે, પરંતુ સાથે સાથે એક સમયમાં જ ઉત્પન્ન થાય છે. ચેાથા તે એક ઈન્દ્રિયવાળા જીવે. જૂદા જૂદા આયુષ્યવાળા પણ હોય છે, અને જુદા જુદા સમયમાં પણ ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે એક ઇન્દ્રિયવાળા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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