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प्रमैयन्द्रका टीका श०३४ अ. श१ सू०५ विग्नहगत्योत्पातनिरूपणम् ३८१ उपपातयितव्यः २० । अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकस्य अपर्याप्त सूक्ष्मवायुका. यिके, पर्याप्त सूक्ष्मवायुकायिके, अपर्याप्तबादरवत्युकायिके, पर्याप्त वादरवायु. कायिके अपर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिके, पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिके, अपर्याप्त बादरवनस्पतिकायिके पर्याप्त बादरवनस्पतिकायिके अत्रैव प्रदर्शितः अकायिकवदेव उपपातो वर्णनीयः, उपपात प्रकारस्तु स्वयमेवोहनीय इति १२०॥ एवं जहा अपज्जत्तसुहुमपुढीकाइयस्स गमओ भणिओ' एवं यथा-पूर्वोक्त पकारेण अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकस्य गमको भणित:-कथितः, 'एवं पज्जत्तसुहुमपुढवोकाइयस्स वि भाणिययो' एवम् अपर्याप्त सूक्ष्पपृथिवीकायिकवदेव पर्याप्त सूक्ष्म पृथिवी. कायिकस्यापि गमको भणितव्यः, तथाहि-पर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकः खलु सूक्ष्मपृथिवीकायिकका इसी रीति के अनुसार' अपर्याप्त सूक्ष्मवायुकायिक में पर्याप्त सूक्षपवायुकायिक में, अपर्याप्त बादरवायुकायिक में पर्याप्तबादवायुकायिक में, अपर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक में, पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक में, अपर्याप्त पादरवनस्पतिकायिक में और पर्याप्त बादरवनस्पतिकायिक में इन जीवों में अप्कायिकके जैसा ही उत्पाद वर्णित कर लेना चाहिये । तथा इस सम्बन्ध में उपपाद का प्रकार अपने आप उद्भाविन कर लेना चाहिये ।२०। 'एवं जहा अपज्जत्त सुहुमपुढवीकाइयस्स गमओ भणिओ' इस प्रकार जैसा उत्पाद प्रकार यह अपर्याप्त सूक्षपृथिवीकायिक का कहा गया है, 'एवं पज्जत्त सुहमपुढवी कायस्स वि भाणियो' उसी प्रकार से पर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकका भी उत्पाद प्रकार कर लेना चाहिये। પૃથ્વિકાયિકનું આજ પ્રમાણે “અપર્યાપ્તસૂમ વાયુકાયિકમાં, પર્યાપ્ત સૂક્ષમ વાયુકાયિકમાં, અ પર્યાપ્ત બાદર વાયુકાવિકેમાં પર્યાપ્ત બાદર વાયુકાયિકમાં, અપર્યાપ્ત સૂમ વનસ્પતિકાયિકમાં, પર્યાપ્ત સૂમ વનસ્પતિકાયિકમાં અપર્યાપ્ત બાદર વનસ્પતિકાયિકમાં અને પર્યાપ્ત બાદર વનસ્પતિકાયિકમાં, અપકાયિક જીવોના ઉત્પાદના કથન પ્રમાણેનું વર્ણન કરી લેવું. તથા આ સંબંધમાં ઉ૫પાત-ઉત્પત્તિને પ્રકાર સ્વયં ઉદ્ભાવિત કરી સમજી લે ૨૦, 'एवं जहा अपज्जत्तसुहुमपुढवीकाइयस्स गमओं भणिओ' ५५र्यात सूक्ष्म वि.
यिना पहने। २२ शत ४७६ छ, 'एवं पज्जत्तसुहमपुढवीकाइयरस वि भाणियवो' मे प्रमाणे पति सूक्ष्म वीBि GHIE
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭