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________________ ३६२ भगवतीने कस्य शर्कराममा पूर्वचरमान्ते समवहत्य शर्करापमा पश्चिमचरमान्ते समु. त्पद्यमानस्य अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिषीकायिकादारभ्य यावत् पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्का. यिकेषु उत्पतिं वदन् एष एव क्रमो ज्ञातव्य इति । अथ एतदेव समयक्षेत्रमाश्रित्याह-'अपज्जत्त सुहुमपुढवीकाइए णं भंते' अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकः खलु भदन्त ! 'सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए' शर्कराप्रमाया द्वितीय पृथिव्याः पौरस्त्ये चरमान्ते समवहतः, मारणान्तिकसमुद्घातं कृतवान् 'समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपज्जत्तवायरतेउकाइयत्ताए उपवज्जित्तर' समवहत्य मारणान्तिकसमुद्घातं कृत्वा यो भव्यः समयक्षेत्रे अपर्या. प्तवादरतेजस्कायिकतया-अपर्याप्तबादरतेजस्कायिकरूपेण उत्पत्तुम् , 'से गं भंते ! कर समइएणं पुच्छा' स खलु भदन्त ! कति सामयिकेन विग्रहेण उत्पहुआ है। तथा च-अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकका शर्कराप्रभा पृथिवी के पूर्वचरमान्त में मारणान्तिक समुद्घात द्वारा मरण कहकर जैसा उसका शर्कराप्रभापृथिवी के पश्चिम चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवी कायिक रूप से उत्पाद एक अथवा दो अथवा तीन समयवाले विग्रह द्वारा कहा गया है-सो इसी प्रकार से इसकी उत्पत्ति पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिकों तक में कह लेनी चाहिये । 'अपज्जत्त सुहुम पुढवीकाइएणं भंते ! 'हे भदन्त ! जिस अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक जीवने 'सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए' शर्कराप्रभा पृथिवी के पूर्व चरमान्त में मारणान्तिक समुद्घात से मरण किया 'समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अपज्जत घायर तेउकाइयत्ताए' और मरकर वह समयक्षेत्र अढाई द्वीप समुद्र में अपर्याप्त बादतेज. स्कायिक रूप से उत्पत्ति के योग्य हुआ तो 'से णं भंते ! कासमइएणं ર્યાપ્ત સૂમ પૃથ્વીકાયિકનું શર્કરા પ્રભા પૃથ્વીના પૂર્વચરમાતમાં મારણતિક સમુદુઘાતદ્વારા મરણ કરીને જે રીતે તેઓને શર્કરપ્રભા પૃથ્વીના પશ્ચિમચરમાન્તમાં અપર્યાપ્ત સૂકમ પૃથ્વીકાયિકપણાથી ઉત્પાદ એક અથવા બે અથવા ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી કહેલ છે, તે એજ પ્રમાણે તેઓની त्पत्ति पर्यात सूक्ष्म ते४२ यि सुधीमा पीने. 'अपज्जत्तसहमपुढवीकाइएणं भते ! 3 भगवन् रे मर्याप्त सूक्ष्म वीयि: वे 'सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए' मा सीना पूर्वयरमान्तमा भा२न्ति समुधातथी भरण पाभ्यो 'समोहणित्ता जे भविए समयखेत्ते अज्जत्तवायरते उकाइयत्ताए उबवज्जित्तए' मन भरीने समय ક્ષેત્ર (અઢી દ્વીપ)માં અપર્યાપ્ત બાદરતેજસ્કાયિકપણુથી ઉત્પન્ન થવાને યોગ્ય શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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