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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३४ अ.श.१ १०२ विग्रहगत्योत्पातनि० ३५३ इस्य-मारणान्तिक समुद्घातं कस्बा यो भव्यः 'इमीसे रयणप्यमाए पुढबीए' एतस्या रत्नमभायाः पृथिव्याः, 'पुरस्थिमिल्ले चरिमंते' पौरस्त्ये-पूर्वे चरमान्ते, 'अयज्जत्त मुहमपुढवीकाइयत्ताए उववज्जित्तए' अपर्याप्तमृक्षः पृथिवीकायिकतया अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकरूपेणोत्पत्तुम्, 'से णं भंते ! कइसमइएणं. स खलु भदन्त ! कति सामयिकेन विग्रहणोत्पद्यतेति प्रश्नः। उत्तरमाह-सेसं वहेव' इत्यादि । 'सेसं लहेब निरवसेस' शेषम्-एखदतिरिक्त निरवशेष प्रश्न वाक्यमुत्तरवाक्यं च तथैव-सर्वत्र समुद्घातेषु सर्वत्र चोपपातेषु यथैव प्रश्नोत्तर प्रकरणं कथितं तेनैव रूपेण निरवशेषम् इहापि अध्येतव्यम् । एकसामयिकेन यावत् त्रिसामयिकेन वा विग्रहेणोत्पद्यत 'से केण्टग' इत्यादिकं पूर्वमूत्रपठितमेन 'अपज्जप्स सुहुम पुढवीकाइयत्ताए उववज्जित्तए' और मरकर वह उसी रत्नप्रभापृथिवी के पूर्व चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हुआ 'सेणं भंते ! कइसमदएणं' तोहे भदन्त ! वह वहां कितने समय वाले विग्रह से उत्पन्न होता है ? उत्तर में प्रभुश्री गौतमस्वामी से कहते हैं- सेसं तहेव निररसेस' हे गौतम ! इस सम्बन्ध में जैसा कि पूर्व में सर्वत्र समुद्घातों में और उपपातों में प्रश्नो. तर प्रकरण कहा गया है वैसा ही यहां पर भी वही सब कथन कह लेना चाहिये । अर्थात् वह वहाँ एक समयवाले विग्रह से उत्पन्न होता है अथवा दो समयवाले विग्रह से अथवा तीन समयवाले विग्रहसे उत्पन्न होता है। 'से केणट्टेणं' इत्यादि सूत्र से प्रश्न और ‘से तेणटेण०' इत्यादि सूत्र से उत्तर जैसा पहिले कहा जा चुका है वह सब यहां पर वहां से आकर्षित कर कह लेना चाहिये। यही बात-सेसं तहेव निरवसेस' इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते! सुहुमपुढवीकाइयत्ताए उववज्जित्त' મરણ પામીને તે એજ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ચરમન્તમાં સૂકમ પૃથ્વીકાયિક पाथी उत्पन्न वान योग्य सनेस डाय से ण भंते ! कइ समइएण' तर ભગવન તે ત્યાં કેટલા સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरभा प्रल छ -'सेस तहेव निरवसेस' गौतम ! साधमां જે પ્રમાણે મેં પહેલા બધે સ્થળે સમુદ્દઘાતમાં અને ઉપપાતમાં પ્રશ્નોત્તર રૂપથી પ્રકરણ કહ્યું છે, એ જ પ્રમાણે અહિયાં પણ તે સઘળું કથન કહી લેવું. જોઈએ. અર્થાત્ તે ત્યાં એક સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી ઉત્પન્ન થાય છે. અથવા બે સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી અથવા ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી ઉત્પન્ન थाय छे. 'से केणट्रेणं' ४त्यादि सूत्रथी प्रश्न भने ‘से तेण ट्रेणं' त्याहि सूत्रथा ઉત્તર જે પ્રમાણે પહેલાં કહેલ છે. એ જ પ્રમાણે તે તમામ ઉત્તર અહીયાં सेवा. या पात 'सेस तहेध निरवसेस' या सूत्राा माडियां सारे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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