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________________ वचन्द्रिका टीका श०३४ अ.श.१ २०२ विग्रहगत्योत्पातनि० ૪૧ विग्रहेणोत्पद्येत ? इति प्रश्नः, उत्तरमाह - 'सेस' इत्यादि, ' से तहेव जान से तेणट्टेणं' शेषम् - प्रश्नातिरिक्तमुत्तरं तदेव समुत्पद्यमानस्य पृथिवीकायिकस्य यन् कथितं तदेव यात्वतेनार्थेन०, हे गौतम । एकसामयिकेन वा यावत् त्रिसानपिकेन वा, विग्रहेण उत्पद्येत तत् तेनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते, एकसामयिकेन वा, यावत् त्रिसामायिकेनेत्यादि । हे गौतम! मया खलु सप्तश्रेणयः कथिताः, इत्यादिकं सर्वमहानुसन्धेयमिति । एवं पुढवीकाइरस चउत्रिरे उपवास्यब्यो' एवम् - प्रदर्शितक्रमेण पृथिवीकायिकेषु चतुर्विधेष्वपि सूक्ष्मवादरपर्याप्तापर्याप्त भेदभिन्नेषु अपर्याप्त बादरतेजस्कायिकस्य उपपातो वर्णनीयः वर्णनमकारस्तु स्वयमेवोहनीयः । 'एवं आउकाइए चव्विसु वि' एवं यथा चतुर्वित्र पृथिवीकायिकेषु उत्पन्न होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-से से तहेब जाव से तेणट्टेणं' हे गौतम ! वह वहां पर एक समयवाले त्रिग्रह से अथवा दो समग्रवाल विग्रह से अथवा तीन समयवाले विग्रह से उत्पन्न होता है ऐसा यहाँ पर सब उत्तर रूप कथन पूर्ववत् समझ लेना चाहिये ! हे भदन्न ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ! हे गौतम! मैंने सात श्रेणि कही हैं । यहां पर भी उत्तर रूप में सब कथन पूर्वके जैसा ही लगा लेना चाहिये 'एवं पुढवीकाइए चउच्विहेतु उववाएयन्त्रों' इस प्रकार प्रकट किये गये क्रम से अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक के उत्पाद का सूक्ष्मबादर पर्याप्त अपर्याप्त भेद विशिष्ट पृथिवीकायिकों में उपपात कर लेना चाहिये, तथा इस सम्बन्ध में वर्णन करने का प्रकार अपने आप उद्भावित कर लेना चाहिये। ' एवं आउकाइएस चउब्विहेतु वि' जिस रीति से વિગ્રહગતિથી ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે-‘તેર’ तद्देव जाव से तेणट्टेण' हे गौतम! त्यां मे समयवाणी विग्रहगतिथी અથવા એ સમયવાળી વિગ્રહગતિથી અથવા ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહગતિથી ઉત્પન્ન થાય છે. આ પ્રમાણે અહિયાં સઘળુ' ઉત્તર વાકય રૂપ કથન સમજી લેવુ'. હે ભગવન્ આપ એવું શા કારણથી કહા છે ?આ પ્રશ્નના ३ गौतम ! भें સાત શ્રેણીચે કહી છે, વિગેરે સઘળુ કથન અહિયાં પણુ उत्तर ३ये पडेलां ह्या प्रमा स्थन समल सेवु. 'एव' पुढवीकाइपसु 'चव्विसु उत्रवायव्वो' आ रीते उपर अगर ४६वामां आवेला उभथी अपर्याप्त બાદર તેજસ્કાયિકાના ઉત્પાદનું-સૂક્ષ્મ, ખાદર, પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્ત ભેદવાળા પૃથ્વિકાયિકાનું વર્ણન સમજી લેવું. તથા આ વિષયનું વર્ણન કરવાની રીત स्वय' सम सेवी. 'पर्व' आउकाइपसु चउव्विद्देसु वि' के रीतथी यार प्रहारना ઉત્તરમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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