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________________ २५२ भगवतीस्त्रे हननयोग्यं यस्य कर्मण स्तत् । यदुदयात् जीवस्य श्रोत्रेन्द्रियं न लभ्यते तत्कर्म श्रोत्रे. न्द्रिय बध्यं कथ्यते-एवं सर्वत्र बोध्यम्, एतन्मतिज्ञानावरणविशेष इत्यर्थः, एवम्'चक्खि दियवझ' चक्षुरिन्द्रियबध्यम्, चक्षुरिन्द्रिय हननीयं तद्-दर्शनावरणा विशेषः १० । 'पाणिदियवज्झ" घ्राणेन्द्रिय वध्यम्, घ्राणेन्द्रिय हननीयम् ११ ।' "जिभिदियवज्झं' जिवेन्द्रिय वध्यम् जिहवेन्द्रिय हननीयं १२ । स्पर्शनेन्द्रिय बध्यन्तु तेषामपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिकानां नास्ति, यतः स्पर्शनेन्द्रियबध्यत्व स्वीकारे-एकेन्द्रियत्वहानिप्रसङ्गस्यादिति। 'इथिवेयवझ' स्त्रीवेदवध्यम् , यदुदयात् स्त्रीवेदो न लभ्यते तत् स्त्रीवेदहननीयं कर्म १३ । 'पुरिसवेदवज्झं' पुरुषवेदबध्यम् , यदुदयात् पुरुषवेदो न लभ्यते, तस्कर्मपुरुषवेदहननीयम् १४ । नपुंसकूबध्यंतु एकेन्द्रियाणो नास्ति-नपुंसकवेदवृत्तित्वादिति। एवमेतायतु देशकममकृतयो भवन्ति। चाहिये यह श्रोत्रेन्द्रिय कर्म मतिज्ञानावरण विशेष रूप होता है। 'चक्खिदियवज्झ तथा चक्षु इन्द्रिय वध्यकर्मका वे वेदन करते हैं। यह चक्षुरिन्द्रिय अध्यकर्म दर्शनावरणीयकर्म विशेष रूप होता है। 'घाणि दियवज्ञ" तथा घ्राणेन्द्रिय वध्यकर्म का वे वेदन करते हैं। 'जिभिदियवज्झ' जिहवेन्द्रिय वध्यकर्म का वेदन करते हैं। स्पर्शनेन्द्रिय पध्यकर्म का वेदन उन अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकों के नहीं है, क्यों कि इनके यदि स्पर्शनेन्द्रिय वध्यकर्म का वेदन स्वीकार किया जाय तो इनमें एकेन्द्रियता को हानि का प्रसंग प्राप्त होगा। 'इस्थिवेदवज्झ' इसी प्रकार से ये अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव स्त्रीवेद वध्यकर्म का भी वेदन करते हैं । जिस के उदय से स्त्री वेद प्राप्त न हो वह स्त्री वेद वध्यकर्म है। 'पुस्सिवेदवज्झ' पुरुष वेद वध्य कर्म का वेदन करते हैजिस के उद्य से पुरुष वेद प्राप्त न हो सके वह पुरुष वेद वध्यकर्म है, કર્મનું વેતન કરે છે. આ ચક્ષુ ઈદ્રિયાવરણ કર્મ દર્શનાવરણ વિશેષ રૂપ डाय छे. 'धाणिदियवज्झ' तथा प्राट्रियाध्य भनु वहन ४२ छे. जिभिदियवज्झ' ड्वेद्रियवध्य भनु वेहन ४२ छे. ते अपर्याप्त सूक्ष्म પૃથ્વીકાયિકાને સ્પર્શેન્દ્રિયવધ્ય કર્મનું વદન હોતું નથી. કેમ કે તેઓને જે સ્પર્શનેન્દ્રિયવય કર્મનુ વેદન સ્વીકારવામાં આવે તો તેમાં એકન્દ્રિય पानी नाना प्रस1 पस्थित थशे. 'इत्थिवेयवज्झ' मा०८ प्रमाणे मा અપર્યાપ્ત સૂફમ પૃથ્વીકાયિક જી સ્ત્રીવેદવધ્ય કર્મનું પણ વેદન કરે છે. જેના अध्ययी सीव प्राप्त न थाय ते श्रीवहqध्य ४ ४ाय छे. 'पुरिसवेदवज्झ' પુરષ વદવધ્ય કર્મનું વેદન કરે છે. જેના ઉદયથી પુરૂષદ પ્રાપ્ત ન શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭.
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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