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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०३३ उ.१ सू०१ एकेन्द्रियजीवनिरूपणम् २५१ कमाइयाणं भंते' अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकजीवाः खलु भदन्त ! 'कइ कम्म पगडीओ वेदेति' कति कर्मप्रकृती वेदयन्तीति वेदनविषयः प्रश्नः । भगवानाह'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा!' हे गौतम! 'चोदस कम्मपगडीओ वेदेति चतुर्दश कमप्रकृती वैदयन्ति, अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक जीवा इति । प्रकारभेदमेंव दर्शयति-'तं जहा' इत्यादि । 'तं जहा' तद्यथा-नाणावरणिज्जं जाव-अंतराइयं' ज्ञानावरणीयं यावद् आन्तरायिकम् । यावत्पदेनदर्शनावरणीय वेदनीय. मोहनीय आयु-नाम-गोत्राणां संग्रहो भवति । तथाचेमा ज्ञानावरणीयादिका अष्टकर्म. प्रकृतयः ८ । तथा-'सोइदियवज्झं' श्रेषेन्द्रिय वध्यम्, श्रोत्रेन्द्रियं बध्यं हननीयंसूक्ष्मपृथिवीकायिकजीव 'कह कम्मपगडीओ वेदेति' कितनीकर्मप्रकृतियों का वेदन करते हैं ? 'गोयमा! चोदसकम्म पगडीओ वेदेति' हे गौतम! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव १४ कर्मप्रकृतियों का वेदन करते है।त जहा' जो इस प्रकार से हैं-'णाणावरणिज्ज जाव अंतराइय' ज्ञानावरणीय से लेकर अन्तराय तक यहां यावत् पद से दर्शनावरणीय वेदनीय मोहनीय, आयु, नाम, और गोत्र इनका ग्रहण हुआ है। इस प्रकार इन ज्ञानावरणीयादिक आठ कर्मप्रकृतियों का वे वेदन करते हैं तथा 'सोइंदियवज्झ" श्रोत्रेन्द्रिय वध्य श्रोत्रेन्द्रिय, वध्य हनन करने योग्य जिस कर्म के हो वह श्रोगेन्द्रिय अध्य कर्म कहलाता है जिस के उदय से जीव को श्रोत्रोन्द्रियकी प्राप्ति न हो सके उस कर्म का नाम श्रोनेन्द्रिय वध्य कर्म है उस श्रोनेन्द्रिय वध्य कर्म का वेदन करते हैं, इसी प्रकार आगे भी समझ लेना यि ७! 'कइ कम्मपगडीओ वेदेति' की 3 प्रतियोनु वहन रे छ १ 'गोयमा ! चोदसकम्मपगडीओ वेति' हे गीतम! अपर्याप्त सक्षम की કાયિક જીવ ચૌદ ૧૪ કર્મપ્રકૃતિનું વેદન કરે છે. ___त जहा' मा प्रमाणे छ.-'णाणावरणिज्जं जाव अंतराइय' ज्ञाना१२. શીયથી લઈને અન્તરાય સુધી. અહિયાં યાવત્ પદથી દર્શનાવરણીય, મોહનીય, વેદનીય, નામ, ગોત્ર, અને આયુ આ કર્મ પ્રકૃતિ ગ્રહણ થઈ છે. આ રીતે આ જ્ઞાનાવરણીય વિગેરે આઠ કર્મ પ્રકૃતિનું તેઓ વેદન કરે છે. તથા 'सोइदियवज्झ' श्रोत्रंद्रिय ध्य-श्रोन्द्रियनु नन ४२१॥ योग्य रे भाय છે તે શ્રોત્રેન્દ્રિય વધ્ય કર્મ કહેવાય છે. જે કમના ઉદયથી શ્રોત્રેન્દ્રિયની પ્રાપ્તિ ન થઈ શકે તે કર્મનું નામ શ્રોત્રદ્રિય વધ્ય કર્મ છે. એ શ્રોત્રેન્દ્રિય વધ્ય કર્મનું વેદન કરે છે તેમ સમજવું આ શ્રોત્રેન્દ્રિય વધ્ય કર્મ भतिज्ञानावर विशेष ३५ डाय . 'चक्खि दियवाझ" तथा यक्ष दियध्य શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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