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भगवतीतून क्षुल्लककृतयुग्मनारकस्य वक्तव्यता तथैव पङ्कममा नारकपृथिव्या धूमपभा पृथिप्याश्रितनारकाणामपि वक्तव्यता ज्ञातव्या। ‘एवं चउसु वि जुम्मेमु' एवम् क्षुल्लाकृतयुग्मयदेव चतुर्वपि युग्मेषु कृतयुग्मयोजद्वापरयुग्मकल्योजरूपेष्वपि नीललेश्यनारकाणां वालुकाममा पङ्कप्रभा धूमपभा तृतीयचतुर्थपञ्चमी पृथिव्या. वितानां वक्तव्यता ज्ञातव्या। 'नवर परिमाणं जाणियध्वं' नवरं केवलं परिमाणं मिन्नभिन्नरूपेग तत्तत् युग्मे ज्ञातन्यं चतुरष्टद्वादश प्रभृति क्षुल्लक कृतयुग्मादि स्वरूपं ज्ञातव्यमित्यर्थः । परिमाणं तत्तद्युग्मं ज्ञातव्यमिति सत्र केन रूपेण शासव्यम्, तबाह-'परिमाणं' इति, 'परिमाणं जहा कण्हलेस्स उद्देसए' परिमाणं यथा प्रमाण युक्त नारकों की भी वक्तव्यता औधिक नीललेश्यावाले कृतयुग्म राशि प्रमाणयुक्त नारको के जैसी ही है। 'एवं पं.भाए विधूमप्पभाए वि' जैसी बालुकाप्रभाश्रित नीललेश्य क्षुल्लक कृतयुग्मवाले नारक की वक्तव्यता है वैसी ही वक्तव्यता पङ्कपमा नारक पृथिवी के और धूमप्रभा पृथिवी के नारकों की भी है । 'एवं चउसु वि जुम्मेसु क्षुल्लक कृतयुग्म के जैसा ही चारों युग्मों में-कृतयुग्म, योज, द्वापर और कल्योज-इन युग्मों में भी बालुकाप्रमा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा इन तीन पृथिवियों के आश्रित हुए नीललेश्यावाले नारक जीवों की वक्तव्यता जाननी चाहिए । 'नवरंपरिमाणं जाणियवं' परन्तु उस-उस युग्म में परिमाण भिन्न-भिन्न रूप से जानना चाहिये । और वह परिमाण चार, आठ, बारह आदि क्षुल्लक कृतयुग्मादि रूप होता है ऐसा समजना चाहिये, इसी बात को 'परिमाणं जहा कण्हलेस्स उद्देसए' इस सूत्रपाठ द्वारा स्पष्ट किया गया है अर्थात्-कृष्णलेश्योद्देशक में जमा प्पभाए वि धूमप्पभाए वि' पासुमा युत नामदेश्या१७क्षु कृतयुग्म નાકોનું કથન જે પ્રમાણે કહેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું કથન પંકમભા નારક પૃથ્વીના અને ધૂમપ્રભા ના૨ક પૃથ્વીના નાકેના સંબંધમાં પણ કહેલ છે. 'एव च उसु वि जुम्मेसु' क्षुसार तयुना थन प्रमाणे १ २.२ युभोमा ५५ એટલે કે-કૃતયુગ્ન, જદ્વાપર અને કલ્યાજ આ યુગ્મોમાં પણ વાલુકાપ્રભા પંકપ્રભા, ધ્રુમપ્રભા, આ ત્રણ પૃથ્વીના આશ્રયવાળા નીલલેશ્યાવાળા નારક लवानुथन सभा
'नवर परिमाणं जाणियव्व' परतु ते ते युभाभा परिणाम Hanઅલગ હોવાનું સમજવું. અને તે પરિણામ ચાર, આઠ, બાર વિગેરે મુરલક इतयुभ विगैरे ५वाणु उ.य छे. तेम सम । 11 'परिमाण जहा कण्हलेस्त्र उद्देसए' या सूत्रा। समग छे. अर्थात अश्यावामा
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧૭