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________________ १८६ भगवतीसवे सुपपातादिः कथित स्तेनैवरूपेण कृष्णलेश्यक्षुल्लककल्योज प्रपाणयुक्तनारका णामपि उपपातादिको ज्ञातव्यः । किन्तु क्षुल्लककृतयुग्मनारकापेक्षया यद्वैलक्ष नाश कल्योजप्रमाणकनारकस्य विद्यते तदर्शयति-'नवरं' इत्यादिना, 'णवर एको वा, पंच वा, नव वा, तेरस वा, संखेज्जा वा, असंखेना वा' नवर केवल मेको वा एचवा, नव वा, प्रयोदश बा, संख्याता वा, असंख्याता वा नारका एकसमये नरकावासे समुत्पधन्ते 'सेसं तं चेव' शेष परिमाणातिरिक्त सर्वमपि तदेव-कृतयुग्मनारकवदेव ज्ञातव्यमिति । एवं धूमपभाए वि तमाए वि अहे सत्तमाए वि' एवं सामान्यतः कृष्णछेश्य क्षुल्लककल्योजनारकाणां यथा उप. पातादिः कथित रतेनैव रूपेण धूमममायां पश्चमनारकपृथिव्यामपि कृश्णलेश्य कृतयुग्म नारकों का उत्पात आदि कहा गया है वैसा ही कृष्णलेश्या पाले क्षुल्लक कल्योज प्रमाण युक्त नारको का भी उपपात आदि जानना चाहिये। किन्तु क्षुल्लक कृतयुग्म नारकों की अपेक्षा जो क्षुल्लक कल्पोज प्रमाण युक्त नारकों में अन्तर है वह 'नवरं एक्कोवा पंच वा नव वा तेरस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट किया गया है, तशच वहां वे नारक एक समय में एक अथवा पांच, या नौ या तेरह या संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। सेस तं चेव' परिमाण से अतिरिक्त और सब कथन कृतयुग्म नारकों के जैसा ही जानना चाहिये । 'एवं धूमप्पभाए वि तमाए वि अहे सत्तमाए वि' सामान्य से कृष्णलेश्यावाले क्षुल्लक कल्योज प्रमाणयुक्त नारकों के जैसा उपपात आदि कहा गया है उसी रूप से पंचमनारक पृथिवी जो धूमप्रभा छ छ -'एवं चेत्र' गौतम ! ४०४वेश्यापार क्षु३कृतयुभ नाना સંબંધમાં જે પ્રમાણે ઉત્પાદ વિગેરેનું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણેનું કથન કૃણલેશ્યાવાળા કલ્યાજ પ્રમાણુવાળા નારકાના સંબંધમાં પણ ઉપપાત વિગેરે સંબંધી કથન સમજવું. પરંતુ ક્ષુલ્લક કૃયુમ નારકે કરતાં ક્ષુલક કલ્યાજ પ્રમાણુવાળા નારકોના यनमा २ ३२॥२ छ, त 'नवर एको वा पंच वा नव वा तेरसवा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा' मा सूत्राथी प्रगट ४२ छ. तथा त्यांत नारी : સમયમાં એક અથવા પાંચ અથવા નવ અથવા તેર અથવા સંખ્યાત અથવા असभ्यात उत्पन्न थाय छे. 'सेस त चेव परिणाम द्वारथी मान्य माडीन सणु ४थन कृतयुग्म ना२31न४थन प्रमाणे सभा. 'एवं धूमप्पभाए वि समाए वि अहे सत्तमाए वि' सामान्य वेश्या क्षुदस या प्रमाणा નારકોના ઉત્પાદ વિગેરેના સંબંધમાં જે પ્રમાણેનું કથન તેમના ઉપપાત વિગેરે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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