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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०३१ ३.१ सू०१ चतुर्युग्मनिरूपणम् कस्मात् स्थानविशेषादागत्य नरकावासे समुत्पद्यन्ते ? इति प्रश्नः, भगवानाह'एवं जहेव' इत्यादि, 'एवं जहेव खुड्डागकड जुम्मे' एवं यथैव क्षुल्लककृत. युग्ममकरणे नारकाणामुत्पत्ति दर्शिता तथैव इहापि क्षुल्लककल्योज नारकाणां न नैरयि केभ्य उत्पत्तिः किन्तु पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्यः तथा गर्भजमनुष्येभ्यथा गत्येह समुत्पत्ति भवतीति । 'नवर परिमाणं एको वा, पंच वा, नव वा, तेरस वा संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जंति' नवरम् केवलं परिमाणं कृतयुग्म नारकाद्विलक्षणं तदिदम् एको वा, पञ्च चा, नव वा, त्रयोदश वा, संख्याता वा, नरकावास में उत्पन्न होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'एवं जहेव खुड्डाग कडजुम्मे' हे गौतम ! जैसा कथन क्षुल्लक कमयुग्म प्रकरणा में नारको के उत्पाद के विषय में किया गया है उसी प्रकार से यह प्रकरण इस क्षुल्लक कल्योज नारकों के प्रकरण से उत्पाद के विषय में भी कहना चाहीये। इस प्रकार क्षुल्लक कल्योज नारक नैरयिकों में से आकर के उत्पन्न नहीं होते हैं और न देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं किन्तु वे पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों में से आकर के नरकावास में उत्पन्न होते हैं, और गर्भज मनुष्यों में से आकर के वहाँ उत्पन्न होते हैं । 'नवरं परिमाणं एकको वा पंच वा नव वा तेरस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जत' यहां पर कृतयुग्म नारकों के प्रकरण से यदि कोई विशेषना है तो वह परिमाण की अपेक्षा से ही है, अत: यहां पर क्षुल्लक कल्योज नारकों का प्रमाण एक समय में उत्पत्ति का एक अथवा पांच अथवा नौ अथवा G4-1 थाय छ १ मा प्रशन उत्तरमा सुश्री ४ छे ४- एवं जहेव खुड्डागकडजुम्मे' गौतम! क्षुदस कृतयुभ प्रभावा! नाना समयमा २ પ્રમાણેનું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એ જ પ્રમાણે તે પ્રકરણ આ મુદલક કાજ નારક સંબંધી પ્રકરણ તેમના ઈત્પાદના સંબંધમાં પણ કહેવું જોઈએ. આ રીતે ક્ષુલ્લક કલ્યાજ નારક નરયિકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થતા નથી તેમ દેમાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થતા નથી. પરંતુ તેઓ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિકોમાંથી આવીને નરકાવાસમાં ઉત્પન્ન થાય છે, અને ગર્ભજ મનુબેમાંથી આવીને નરકાવાસમાં ઉત્પન્ન થાય છે 'नवर परिमाणं एको वा पंचवा नव वा तेरसवा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जति' मडिया मा कृतयु नाना ५४२मान विशेष છે, તે તે પરિણામના સંબંધમાં જ છે, તેથી અહિયાં સુલક કલ્યાજ નારકોની ઉત્પત્તિનું પ્રમાણ એક સમયમાં એક અથવા પાંચ અથવા નવ અથવા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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