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________________ - प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३१ उ.१ सू०१ चतुर्युग्मनिरूपणम् १५९ भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चत्तारि खुड्डा जुम्मा पभत्ता' चत्वारः क्षुदा युग्माः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा' तद्यथा 'कडजुम्में' कृतयुग्म नामको राशिविशेषः । 'तेयोए' योजः 'दावरजुम्मे द्वापरयुग्मः 'कलियोए' कल्योजः । 'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ' तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुपते 'चत्तारि खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता' चत्वारः क्षुद्रा युग्माः मज्ञप्ताः 'तं जहा' तद्यथा 'कडजुम्मे जाब कलिभोगे' कृतयुग्मो यावत् कल्योजा, अत्र यावत्पदेन योज द्वापरयुग्मयोः संग्रहः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अबहीरमाणे चउपज्जवसिए' यः खलु राशिः समुदायः चतुष्केणापहारेण चतुःसंख्षया विभज्यमानः चतुःपर्यवसितः चतुरवशिष्टो भवेत् ‘से तं खुड्डागकड जुम्मे' स एषः क्षुल्लककृतयुग्मः 'जे णं रासी चउक्केण अवहारेणं अबहीरमाणे ति पज्जवसिए सेत्तं खुड्डाग आदि संख्यावाली राशि क्षुल्लक कृतयुग्म है । उनर में प्रभुत्री कहते हैं-'गोयमा! चत्तारि खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता' हे गौतम! क्षुद्रयुग्मराशि चार प्रकार की कही गई है-'त जहा' जैसे-कडजुम्मे' 'कृत. युग्म 'तेयोए' व्योज 'दावर जुम्मे' द्वापरयुग्म, 'कलियोए' और कल्योज, 'से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चा चत्तारि खुड्डा जुम्मा पण्णत्ता' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि क्षुद्रयुग्म चार प्रकार के कहे गये हैं ? और वे ऐसे आपने बतलाये हैं-कृतयुग्म यावत् कल्योज । यहां यावत् पद से व्योज ओर द्वापरयुग्म का ग्रहण हुमा है। उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! जे णं रासी चक्कएणं अव. हारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए' हे गौतम ! जिपराशि में से चार चार का अपहार करते-करते अन्त में चार बचे रहे ऐसी वह संख्या क्षुद्र कृतयुग्म कही गई है। सा मन उत्तरमा प्रमुश्री ४ छ है-'गोयमा ! चत्तारि खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता' 3 गौतम क्षुद्रयुम्भशा यार मानी ४२ छ, 'त जहा' ते । प्रभार छ.-'कडजुम्मे' इतयु२५ 'तेयोए' व्य२४ 'दावरजुम्मे' द्वापरयु२५ ‘कलियोए' भने या 'सेकेणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ चत्तारि खुडूडा जुम्मा पण्णत्ता' हे भगवन આપ એવું શા કારણથી કહે છે કે-મુદ્રયુગ્મ ચાર પ્રકારના કહ્યા છે ? અને તે કૃતયુમ જ દ્વાર૫ર અને યાવત કાજ સુધી આપે કયા પ્રમાણે ના डेसा छे. मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छे-'गोयमा ! जे गं रासी चक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए' गौतम! २ शशीमा यार यारना अ५ હાર કરતાં કરતા છેવટે ચાર બચે એવી સંખ્યાને સુદ્રકૃતયુગ્મ કહેવામાં આવેલ છે. શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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