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वित्रहगति से जीवों के उत्पात का निरूपण रत्नममापृथिव्याश्रित पृथिव्याघेकेन्द्रिय
जीवों का निरूपण शर्करापमा पृथिव्याभित एकेन्द्रिय जीवों के
उपपात आदि का कथन ३५८-३६८ सामान्य से अधाक्षेत्र उर्ध्वक्षेत्र का आश्रय
करके एकेन्द्रिय जीवों के उपपात का कथन ३६९-३७५ अपर्याप्तक सूक्ष्मपृथ्विकाय आदि के अधोलोक में
विग्रहगति से उत्पात आदिका कथन ३७५-३९४ लोक के पोरस्त्यादि चरमान्त विषय अपर्याप्तक सूक्ष्मपृथ्वीकायके उत्पत्ति आदि का कथन ३९५-४१४ अपर्याप्तक सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव का लोक के
दक्षिण चरमान्तमें उत्पत्ति आदि का कथन ४१५-४२४ वादर पृथ्वीकाय आदि के स्थान आदि का निरूपण ४२५-४४४
दूसरा उद्देशक अनन्तरोपपत्रक एकेन्द्रियों के भेद आदि का निरूपण ४४५-४६४
तीसरा उद्देशक परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव के भेदों का निरूपण ४६५-४७०
चौथे उद्देशक से ११ वें पर्यन्त के उद्देशक का कथन अनन्तरावगाढ से अचरम पर्यन्त के जीवों के
भेदों का कथन ४७१-४७२ दूसरा एकेन्द्रिय शतक कृष्णलेश्यायुक्त एकेन्द्रियों के भेदों का निरूपण ४७३-४७८
तीसरा चौथा और पांचवां शतक नील-कापोत एवं शुक्ललेश्यावाले एकेन्द्रिय जीवों के ग्यारह उद्देशात्मक शतकों द्वारा कथन ४७९-१८१
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭