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________________ १२४ भगवती सूत्रे द्धिका भवन्ति अभवसिद्धिका वा भवन्तीति प्रश्नः पृच्छया संग्रह्यते । भगवानाह 'गोयमा' इत्यादि, गोयमा' हे गौतम! 'भवसिद्धिया नो अमवसिद्धिया' अलेश्याः क्रिपावादिनो जीवाः भवसिद्धिका एव भवन्ति न तु अभवसिद्धिका भवन्तीत्युत्तरम् । ' एवं एएवं अभिलावेणं कण्हपक्खिया तिसु वि समोसरणेसु भयणार' एवमनेन अभिलापेन पूर्वोदितप्रकारेण कृष्णपाक्षिका जीवा स्त्रिष्वपि द्वितीयतृतीयचतुर्थेषु अक्रियावाद्यज्ञानिकवादी - वैनयिकवादी रूपेषु समवसरणेषु भजनया - विकल्पेने वि भवसिद्धिका अपि अभवसिद्धिका अपि ज्ञातव्या इति । 'सुकपक्खिया चउसु वि समोसरणेसु भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया' शुक्लपाक्षिका जीवाः चतुर्ष्वपि प्रथम द्वितीयतृतीयचतुर्थेषु समवसरणेषु क्रियावाद्य क्रियावाद्यज्ञानिवादि वैनयिकबादि रूपेषु भवसिद्धिका एव भवन्ति, नो-न तु कथमपि अमवसिद्धिका भरन्तीति । 'सम्मदिट्ठी जहा अलेस्सा, सम्यग्दृष्टयो जीवा यथा अलेश्यजीवाः होते हैं। 'अलेस्सा णं भंते! जीवा किरियाबाई किं भवसिद्धिया पुच्छा' हे भदन्त ! क्रियावादि अलेश्य जीव क्या भवसिद्धिक होते हैं या भ्रभवसिद्धिक होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा ! भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया' हे गौतम । अलेश्य क्रियावादी जीव भवसिद्धिक ही होते हैं अभवसिद्धिक नहीं होते हैं। 'एवं एएणं अभिलावेणं कण्हपक्खिया तिसु विसमोसरणेसु भयणाए' इस प्रकार अभिलापद्वारा कृष्णपाक्षिक जीव अक्रियावादी अज्ञानिकवादी और वैनयिकवादी रूप तीनों समवसरणों में भवसिद्धिक भी होते हैं और अभवसिद्धिक भी होते हैं। 'सुक्कपक्खिया चउसु वि समवसरणेसु भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया' शुक्लपाक्षिक चारों समोखरणों में भवसिद्धिक हो होते हैं अभवसिद्धिक नहीं होते हैं 'सम्मदिट्ठी जहा अलेस्सा' અભવસિદ્ધિક હોય છે ! આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે. કે'गोयमा ! भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया' हे गौतम! बेश्या विनाना डियावाही वो लवसिद्धि होय छे. लवसिद्धि होता नथी. 'एवं एएणं अभिलाdri sugrat तिलु वि समोसरणेसु भयणाए' मा प्रभाये या अलिसा थी કૃષ્ણપાક્ષિક જીવે અક્રિયાવાદી અજ્ઞાનવાદી, અને વૈયિકવાદી અવસ્થાએમાં लवसिद्धि होय है, अलवसिद्धि होता नथी. 'सुक्कपक्खिया चउसु वि समोसरणे भवसिद्धिया' शुपाक्षिक व थारे समवसरोभां लवसिद्धि होय छे. अलवसिद्धि होता नथी. 'सम्मादिट्ठी जहा अलेस्सा' असेश्य लवाना સબંધમાં જે પ્રમાણે કથન કરવામાં આવેલ છે. એજ પ્રમાણે સમ્યગ્દૃષ્ટિવાળા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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