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भगवतीने सलेश्यानां तिर्यपश्चन्द्रियाणामेवं विधस्वरूपतयोक्तत्वादिति । 'नवर अकिरिया: पाई अमाणियवाई वेणइयवाई य णो णेरइयाउयं पकरें ति' नवरं केवलमेतदेव लक्षण्यं यत् अक्रियावादिनोऽज्ञानिकवादिनो वैनयिकवादिनश्च न नैरयिकायुष्क प्रकुर्वन्ति किन्तु 'देवाउयंपि पकरेंति' देवायुष्कमपि प्रकुर्वन्ति, 'तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरें ति' तिर्यग्योनिकायुष्कमपि मकुर्वन्ति । 'मणुस्साउयपि पकरेंति' मनुष्यायुष्कमपि प्रकुर्वन्ति एवं पम्हलेस्सा वि एवं मुक्कलेस्सा वि भाणियव्वा' एवमुपरोक्तक्रमेण पद्मलेश्यापरिणामवन्तः, एवं शुक्ळलेश्यापरिणामवन्तोऽपि भणितव्या:-कथयितव्याः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका इति, एव. मिमे चापि यदा क्रियावादिनः तदा केवलं देवायुष्क प्रकुर्वन्ति, यदा अक्रिया. वादिनोऽज्ञानिकवादिनो वैनयिकवादिनश्च भवन्ति तदा त्रिविधमपि आयुक प्रकार के परिणाम होते हैं ऐसा पहिले कहा गया है। 'नवरं अकि रियावाई, अन्नाणियवाई, वेणझ्यवाईय णो णेरड्याउयं पकरेंति' किन्तु अक्रियावादी, अज्ञानिकवादी और वैनयिकवादी पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च नैरपिक आयु का बन्ध नहीं करते हैं । वे तो 'देवाउयं पि पकरेंति' देवायु का भी बन्ध करते हैं । 'तिरिक्ख जोणियाउयं पकरेंति' तिर्यगायु का भी पन्ध करते हैं । 'मणुस्साउयं पकरेंति' मनुष्य आयुका भी बंध करते हैं। 'एवं पम्हलेस्सा वि एवं सुक्कलेस्सा वि भाणियव्या' इसी प्रकार से पद्मलेल्या परिणामवाले पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च और शुक्ललेश्या के परिणामवाले पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च भी जानना चाहिये, ये जिस समय क्रियावादी होते हैं तब केवल देवायु का ही बन्ध करते हैं और जब ये अक्रियावादी, अज्ञानिकवादी और वैनयिकवादी होते हैं तब तीनों प्रकार की आयुका बन्ध करते हैं। पर नारकायुका वन्ध नहीं करते हैं डाय छ, प्रभा पडेखा ४२ ४ छे. 'नवर अकिरियावाई, अन्नाणियवाई वेण. इयवाई णों णेर इयाउय पकरें ति' ५२ तु महियावाही अज्ञानवाही अन वैनयिवाही पथन्द्रिय तिय"ययि आयुष्यन। '४२ता नथी तो 'देवाउयपि पकरेंति' हेवमायुना मरेछ, 'तिरिक्खजोणियाउयपि पकरें'ति' तिय"यमायुनी ५५ मध ४२ छे. 'मणुस्साउय पि पकरें ति' मनुष्य आयुन। ५५ ५५ ४२ छे.
एवं पम्हलेस्सा वि एवं सुक्कलेस्सा वि भाणियव्वा' मे प्रमाणे ५५ લેશ્યાના પરિણામવાળા પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ અને શુકલ લેસ્થાના પરિણામવાળા પંચેન્દ્રિય તિયચના સંબંધમાં પણ સમજવું. તેઓ જ્યારે કિયાવાદી હોય છે, ત્યારે કેવળ દેવ આયુને જ બંધ કરે છે. અને જ્યારે તેઓ અક્રિયાવાદી, અજ્ઞાનવાદી અને વૈનાયિકવાદી હોય છે, ત્યારે તેઓ ત્રણ પ્રકારના આયુને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૭