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श्री भगवतीसूत्र भाग सत्तरहवें की विषयानुक्रमणिका अनुकमा विषय
पृष्ठाङ्क अठाइसवां शतक उद्देशक पहला १ जीवों के पापकर्म समार्जन का निरूपण
१-११ दूसरा उद्देशक २ अनन्तरोपपन्नक नारक जीवों के पापकर्म
समार्जन का निरूपण १२-१६ तीसरा उद्देशक से ग्यारहवां उद्देशक पर्यन्त उद्देशकों की परिपाटि का कथन
१७-२० उन्तीसवें शतक का पहला उद्देशक ४ पापकर्म भोगने का एवं उनको नष्ट करने का कथन २१-३७
दूसरा उद्देशक ५ अनन्तरोपपन्नक नारकादिकों को आश्रित करके
पापकर्म प्रस्थापन आदि का कथन ३८-४७ तीसरा उद्देशक से ग्यारहवें पर्यन्तके उद्देशेका कथन नैरयिकों के अचरमत्व, पापकर्म भोगनेका कथन ४८-५०
तीसवें शतक का प्रारंभ-प्रथम उद्देशक जीवों के कर्मबन्ध होने के कारणों का कथन
५१-७४ जीवों के आयुबन्ध का निरूपण
७५-९७ नैरयिकों के आयुबन्ध का निरूपण
९८-११८ क्रियावादि जीवों के भवसिद्धि आदि होने का कथन ११९-१३३
३० दूसरा उद्देशक ११ अनन्तरोपपन्नक नरयिकों के क्रियावादी
आदि होने का कथन १३४-१४६
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭