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________________ - - - भगवतीसूत्रे दिति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'गो जिगकप्पे होज्जा णो थेरकप्पे होज्जा' निग्रन्थः साधुन जिनालयो भवेत् नवा स्थ. विरकल्पो भवेत् किन्तु 'कप्पातीए होजना कल्यातीतो भवेदिति निम्रन्थः कल्पातीत एव भवेत् तेषां निम्रन्थानां जिनकल्पस्थविरकल्पधर्माणामभावादिति । एवं सिणाए वि' एवम्-निर्ग्रन्थवत् स्नातकोऽपि नो जिनकल्पवान् भवति न वा स्थघिरकल्पवान् भवति किन्तु कल्पातीत एव भवतीति भावः गतं चतुर्थ कल्प द्वारम् ४ । चरिद्वारं पश्चममाह-'पुलाए णं भंते ! कि सामाइयसंजमे होज्जा' पुलाकः खलु भदन्त ! कि सामाणिकसंयमो भवेत् अथा छोट्टावणियसंजमें होज्जा' छेदोपस्थापनीर संयमो भवेत् 'परिहारबिसुद्धियसंजमे होज्जा' अथवा भदन्त ! निन्य साधु क्या जिनकल्पवाले होते हैं ? अथवा स्थविरकल्प वाले होते हैं ? अधया कल्पातीत होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोपमा ! गो जिप्रकप्पे होज्जा, णो थे(कप्पे होज्जा' कप्पतीए होज्जा' हे गौतम ! निर्ग्रन्थ साधु न जिनकल्पवाले होते हैं न स्थविरकल्पवाले होते हैं किन्तु कल्पातीत होते हैं। क्योंकि निर्ग्रन्थ साधु में जिनकल्प और स्थविरकला के धर्म नहीं होते हैं। 'एवं सिणाए वि' निन्ध की तरह स्नातक भी न जिनकल्पवाला होता है और न स्थविर कल्पवाला होता है किन्तु कल्पातीत ही होता है। कल्पद्वार समाप्त। पंचम चारित्र द्वार'पुलाए णं भंते ! किं सामाइयसंजमे होज्जा' हे भदन्त । पुलाक क्या सामायिक संयम वाला होता है ? अथवा 'छेभोवट्ठावणियसंजमे होज्जा' छेदोपस्थापनीय संयमबाला होता है ? 'परिहारविलुद्धियसंजमे અથવા સ્થવિર કલ્પવાળા હોય છે? અથવા ક૯ પાતીત હોય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री छे -'गोयमा ! णा जिणकप्पे होज्जा णो थेरकरपे होज्जा कप्पातीए होज्जा' गौतम! निथ साधु ६५ डात नथी. तम સ્થવિર ક૫ વાળા પણ લેતા નથી. પરંતુ કલ્પાતીત હોય છે, કેમકે– નિથ साधुमा ४६५ मने थपि२ ४८५ नाघडत नथी एवं सिणाए वि' નિત્થના કથન પ્રમાણે સ્નાતક પશુ જીન કલપવાળા હોતા નથી, તેમ સ્થવિર ક૯પવાળા પણ હોતા નથી. પરંતુ કપાતીત હોય છે. ક૯૫દ્વાર સમાપ્ત पांचभुयास्त्रि द्वा२'पुलाए ण भते! किं मामाइयस जमे होज्जा' हे भगवन् सामा यि संयपास डोय छे ? अथवा 'छेओवट्ठावणियसं जमे होज्जा' छेहो५२। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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