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________________ ૬૮૦ भगवतीसने टीका-'जीवाणं भंते !' जीवाः खलु मदन्त ! 'पावं कम्मं किं करिसु करेंति करिस्संति' पापं कर्म किम् पूर्वकाले अकार्षुः, वर्तमानकाले कुर्वन्ति अनागतकाले करिष्यन्ति१, 'करिंसु करेंनि न करिसति' पूर्वकाले अकार्षुः, वर्तमानकाले कुर्वन्ति, अनागतकाले न करिष्यन्ति२, 'करिंसु न करेंति करिस्संति' अका: न कुर्वन्ति करिष्यन्ति३, 'करिस न करेंति न करिस्संति' अकार्षः न कुर्वन्ति न करिष्यन्ति४, इति प्रश्नः, यथा प्रश्ने बन्धिपदसत्चात् पइविंशतितम बन्धिआदिकाल विशेष को लेकर कही गई है। अब इस २७ वें शतक में जीच के द्वारा जो कर्म करने की क्रिया की जाती है वह अतीतादिकाल विशेष को लेकर कही जावेगी, इसी सम्बन्ध से यह २७ वां शतक प्रारम्भ हुआ है। 'जीवा णं भंते ! पावं कम्मं किं करिसु करेंति करिस्तति'-इत्यादि टीकार्थ--'जीवा गं भंते !' हे भदन्त ! जीवोंने 'पावं कम्मं कि करिंसु करेंति, करिस्संति' क्या भूतकाल में पापकर्म किया है ? वर्तमान में वे पापकर्म करते हैं क्या ? और भविष्यत् काल में भी वे पापकर्म करेंगे क्या? अथवा-'करिंसु करेंति, न करिस्संतिर' भूतकाल में उन्होंने पापकर्म किया हैं क्या? वर्तमान में भी वे पापकर्म करते हैं क्या? भविष्यत् काल में वे पापकर्म नहीं करेंगे क्या? अथवा'करिंसु, न करे ति, करिस्संति३' भूतकाल में उन्होंने पापकर्म किया है क्या? वर्तमान में वे पापकर्म नहीं करते हैं क्या? भविष्यत् में वे पापकर्म करेंगे क्या? अथवा-'करितु, न करेंति, न करिस्संति' भूतकाल में उन्होंने पापकर्म किया है क्या ? वर्तमान में वे पापकर्म नहीं કર્મબંધની ક્રિયા અતીતકાલ વિગેરે કાલ વિશેષને લઈને કહેલ છે. હવે આ સત્યાવીસમાં શતકમાં જીવના દ્વારા કર્મ કરવાની જે ક્રિયા કરવામાં આવે છે, તે અતીત વિગેરે કાલ વિશેષને લઈને કહેવામાં આવશે. આ સંબંધને asa ॥ सत्यावीसमा शत प्रारम ४२१आवे छे. 'जीवा णं भंते पाव कम किं करिसु करेंति करिस्सति' त्या टी -'जीवा गं भते' मन् वामे 'पाव कम्म किं करिंसु करेंति करिसंति' भूतमा ५.५४ युछ १ त भानमा ती ॥५४ ४२ छ ? मन मविष्यमा पशु त५।५४ ४२ते ? अथवा 'करिसु, करें ति न करिमति' २ भूतमा तम ५.५४ युछे १ वतमान मा ५६ तमा या५ ४२ छ ? अरे भविष्यमा तसा पा५४भ नही 32 ? 'करिस न करेंति करिसति'३, भू म तमामे पा५४भ यु छ १ त भान भी તેઓ પાપકર્મ કરતા નથી ? અને ભવિષ્યમાં તેઓ પાપકર્મ નહીં કરે? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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