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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६ उ.२ सू०१ चतुर्विशति जोषस्थाननिरूपणम् ६२५ 'आउयं कम्मं कि बंधी' आयुष्कं कर्म किम् अबध्नात् बध्नाति भन्स्यति, अब घ्नात् बध्नाति न भन्स्यति, अबध्नात् न बध्नाति भन्स्यति, अवधनात न बध्नाति न मन्त्स्यतीति चतुर्भङ्गका प्रश्नः, 'एवं चेव तइओ भंगो' एवमेव तृतीयो भङ्गः, 'हे गौतम ! सलेश्योऽनन्तरोपपन्नको नैरयिकः कश्चिदेकः, आयुष्क कर्म अबध्नात् न बध्नाति भविष्यत्काले भन्स्यतीत्याकारकः तृतीयो भङ्गो ज्ञातव्य इति । एवं जाव अणागारोबउत्ते सनत्य वि तइओ भंगों' एवं यावदनारकोप. युक्ते सर्वत्रापि पाक्षिकादारभ्योपयोग पर्यन्तेषु पदेषु तृतीयो भङ्गोऽबध्नात् न में आयुरुक कर्म का बन्ध किया गया होता है ? वर्तमान में भी वह क्या आयुकर्म का बन्ध करता है ? भविष्यत् में भी क्या आयुकर्म का बन्ध करेगा ? इत्यादि रूप से यहां शेष तीन भा और भी उद्भावित करना चाहिये, जो इस प्रकार से हैं -२ 'आयुष्कं कर्म किं भवनात् बध्नाति, न भन्स्यति, ३ आयुष्कं कर्म किं अबन्नात् न बन्नाति, भन्स्पति, ४ आयुष्कं कर्म अबन्नात न वनाति, न भन्स्यति'। इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'एवं चेव तइयो भंगो' हैं गौतम! अनन्तरोपपन्नक नैरयिक ऐसा होता है कि जिसने पूर्वकाल में आयुकर्म का पन्ध किया होता है, वर्तमान में वह आयु कर्म का बन्ध नहीं करता है-पर भविष्यत् काल में वह उसका बन्ध करनेवाला होगा ऐसा यह तृतीय भंग यहां पर हैं। 'एवं जाव अणागारोव उत्ते सव्वत्थ वि तइओ भंगों' इसी प्रकार से पाक्षिक से लेकर अनाकारोपयुक्त तक के पदो में सर्वत्र 'अबध्नात् न बध्नाति, भन्स्यति' ऐसा तृतीय भंग આયુષ્ય કર્મને બંધ કર્યો છે? વર્તમાનમાં પણ આયુષ્ય કમને બંધ કરે છે? અને ભવિષ્ય કાળમાં પણ તે તેને બંધ કરશે આ રીતે બાકીના ત્રણ प्रश्नी ५ स्वयं मालित री सेवा २ मा प्रमाणे छ.--'आयुष्क कर्म कि अबध्नात् बध्नाति, न भन्स्यति (२) आयुक कर्म अबध्नात् न वध्नाति, भन्स्यति(३) आयुष्क कम अबध्नात् न बध्नाति न भन्तस्यति (४) या प्रश्नाला उत्तरमा प्रमुश्री गौतमस्वामीन ४ छ :-'एवं चेव तइयो મો? હે ગૌતમ! કોઈ એક અનંતર ૫૫નક નિરયિક એ હોય છે કેજેણે ભૂતકાળમાં આયુકમને બંધ કરેલ હોય છે. વર્તમાનમાં તે આયુકર્મને બંધ કરતો નથી. અને ભવિષ્ય કાળમાં તે આ યુકર્મને બંધ ४२. से प्रभाएन। जीन महियां घटे छ. 'एव जाव अणागारोवउत्ते.सव्वत्थ नि तइयो भंगो' २) प्रमाणे पाक्षिणा व सामा५यो। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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