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भगवतींसूबे भगवानाह--'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'से जहानामए' स यथा. नामकः 'पवए परमाणे' लयका-उत्प्लुतिकारकः पुरुषः 'परमाणे' प्लवमान:उत्प्लुति कुर्वन् 'अक्सेसं तं चेव' अवशेषं तदेव, अष्टमोद्देशकवदेव ज्ञातव्यम् किय. स्पयन्तमित्याह-एवं जाव वेमाणिया' एवं यावद् वैमानिकाः । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति, हे भदन्त ! मिथ्याष्टिमारकादीना मुस्पस्यादिविषये यद् देवानुपियेण करितम् तत् एवमेव-सर्पया पवमाणे अवसेसं तं चेव, एवं जाव वेमाणिया' । जिस प्रकार कूदने वाला कोई पुरुष कूदता हुआ एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाता है उसी प्रकार से मिथ्यादृष्टि नारक भी अध्यवसाय और योग विशेष से निर्वर्तित करणोपाय द्वारा पूर्वभव को छोड कर आगामी कालमें होने वाले भवान्तर में पहुंच जाते हैं। यहां 'अज्झवसाण. निवत्तिएणं' से लेकर 'एवं जाव वेमाणिया' यहां तक का सब प्रकरण
आठवें उद्देशक के कथन जैसा समझ लेना चाहिये । 'सेवं भंते ! सेवं भंते !त्ति' हे भदन्त ! मिथ्यादृष्टि नारक आदि कों के उत्पाद आदि के विषय में जो आप देवानुप्रिय ने कहा है वह सर्वथा सस्य ही है। इस प्रकार से कह कर गौतमस्वामी ने भगवान् को वन्दना की और पवमाणे अवसेस त चेव, एव जाव वेमाणिया' २ प्रमाणे पापा ४ પુરૂષ કૂદતી કૂદતે એક સ્થાનથી બીજા સ્થાન પર પહોંચી જાય છે. એજ પ્રમાણે મિચ્છાદષ્ટિ નારક પણ અધ્યવસાય અને યોગવિશેષથી નિર્વતિત કરપાયથી પૂર્વભવને છોડીને ભવિષ્યકાળમાં થવાવાળા ભવાન્તરમાં પહોંચી लयमहियां 'अज्झवसाणनिवत्तिएणं' से सूत्राथी छन 'एव' जाव वेमाणिया' मा ४थन पयत तमाम ५४२६५ माम देशाना अथन प्रभाग સમજવું જોઈએ.
'सेव भंते ! सेव भंते ! त्ति' 8 सन् भिथ्याट न॥२४ विगैरेना ઉત્પાદ વિગેરે વિષયમાં આપ દેવાનુપ્રિયે જે કથન કરેલ છે, તે સર્વથા સત્ય છે. આ૫ દેવાનુપ્રિયનું કથન આપ્ત હોવાથી સત્ય જ છે. આ પ્રમાણે કહીને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬