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________________ प्रमेयचन्द्रि का टीका श०२५ उ.८ सू०१ नैरयिकोत्पत्तिनिरूपणम् ४९९ यथानामकः कश्चित्पुरुषः तरुणो बलपान् ‘एवं जहा चोदसमसए पढमे उद्देसए' एवं यथा चतुर्दशशतके प्रथमोद्देश के कथितम् तथैव सर्वमिहापि ज्ञातव्यम् कियपर्यन्तं चतुर्दशशतकीय प्रथमोद्देशकमकरणं ज्ञातव्यं तत्राह-'जाव' इत्यादि, 'जाव तिसमएण वा विग्गहेणं उववज्जति' यावत् त्रिसमयेन विग्रहेणोत्पद्यन्ते त्रिसामयिक विग्रहगत्या समुत्पद्यन्ते इत्यर्थः । उपसंहरति-'तेसि णं जीवा णं तहा सीहागई तहा सीहे गाविसए पन्नत्ते' तेषां खलु जीवानां तथा तादृशी शीघ्रा. गतिर्भवति तथा तादृशः शीघ्रो गतिविषयश्च प्रज्ञप्ता-कथित इति । ते णं भंते ! जीवा कहं परभवियाउयं पकरेंति' ते एकं भवं परित्यज्य भवान्तरे गमनशीला जीवाः कथं केन कारणेन केन प्रकारेण वा परमायुष्कं परभवनिहिकम् आयुष्कं कर्म प्रकुर्वन्ति परभवपापकमायुष्कं कर्म केन प्रकारेण बध्नन्ति? इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'अज्झ. वसाणजोगनिव्वत्तिएणं' अध्यवसानयोगनिर्वतितेन अध्यवसानं जीवपरिणाम: जैसे कोई बलवान् तरुण पुरुष जैसा कि चौदहवें शतक के प्रथम उद्देशक में कहा गया है 'जाव तिसमएण वा विग्गहेणं उववज्जति' कि यावत् वह तीन समयवाली विग्रह गति से उत्पन्न होता है उसी प्रकार से 'तेसिणं जीवाणं तहा सीहा गई तहा सीहे गाविसए पत्ते उन नारकादि जीवों की वैसी ही शीघ्र गति होती है और उसी प्रकार से शीघ्रगति का विषय होता है। ___ 'ते णं भंते ! जीवा कहं परभवियाउयं पकरेंति' हे भदन्त ! एक भव को छोडकर दूसरे भव में जाने के स्वभाव वाले वे जीव किस प्रकार से परभव के आयुकर्म का वध करते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-गोयमा ! अज्झवसाणजोगनिव्वत्तिए णे' हे गौतम ! वे जीव नामए केईपुरिसे तरुणे बलव एव' जहा चउहसमसए पढमे उद्देसए' के गीतमा જેમ કેઈ બળવાન તરૂણ પુરૂષ વિષે ચૌદમા શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં કહેલ छ, 'जाव तिसमएण वा विग्गहेणं उववज्जंति' , यात ते तय समयवाणी विशतिया ५-थाय छे. मे प्रमाणे 'सि' जीवाणं तहा सोहागई तहा सीहे गईविसए पन्नत्ते' ते ना२४ विगेरे वानी की शीति 4 छ. अने से प्रमाणे शीघ्रगतिना विषय हाय छ, 'तेणं भंते ! जीवा कह परभवियाउय' पकरें ति' 3 मावन से सपने छोडी मी मम पाना સ્વભાવવાળા જી કઈ રીતે પરભવના આયુકમને બંધ કરે છે? આ INDI Fत्तरमा प्रभु श्री छ -'गोयमा ! अज्झवसाणजोग्गनिव्वत्तिपणे શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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