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________________ acte ४५२ भगवतीस्त्रे परित्याग इत्यर्थ इति षष्ठमाभ्यन्तरं तपः ६ । सम्प्रति तद्भेदान् दर्शयति-से किं तं पायच्छित्ते' अथ किं तत् प्रायश्चित्तम् प्रायश्चित्तपदेन क्रियत्संख्यकस्य कस्य च ग्रहणं कर्तव्यमिति प्रश्नः, भगवानाह-'पायच्छित्ते दसविहे पन्नत्ते' प्रायश्चित्तं दशविधम्-दशपकारकं प्रज्ञप्तम्, 'तं जहा' तद्यथा-'आलोयणारिहे' आलोचनाम् -आलोचनायोग्यम् 'जाव पारंचियारिहे' यावत्पाराश्चिकाईम्, अब यावत्पदेन बाह्यतपः प्रकरणपरिपठितानां प्रतिक्रमणाहतदुभयाई विवेकाहव्युत्सर्गार्हतपोऽई छेदाई-मूलानिवस्थाप्यागां संग्रहो भवति एतेषां स्वरूपं तु तत एवं द्रष्टव्यमिति । 'सेत्तं पायच्छित्ते तदेतत् मायश्चित्तं कथितमिति । ‘से किं तं विणए' पांचवां भेद है एकाग्रता के निमित्त मन को स्थिर करना ध्यान है। 'घिउस्सग्गो' व्युत्सर्ग यह इसका छहा भेद है। इसका अर्थ है शरीर से ममत्व का त्याग करना अर्थात् कायोत्सर्ग करना। इस प्रकार से ये ६ आभ्यन्तर तप हैं। 'से किं तं पायच्छित्ते' हे भदन्त ! प्रायश्चित्त कितने प्रकार का है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'पायच्छित्ते दसविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! प्रायश्चित्त दश प्रकार का कहा गया है-'तं जहा' जैसे-'आलोयणारिहे जाव पारंचियारिहे' आलोचना के योग्य यावत् पारचितक के योग्य, यहां यावत्पद से बाह्यतप के प्रकरण से पूर्व पठित 'प्रतिक्रमण के योग्य, तदुभयके योग्य, विवेकके योग्य, व्युत्सर्ग के योग्य, तप के योग्य, छेद के योग्य मूल के योग्य अनवस्थाप्य के योग्य' इन पदों का ग्रहण हुआ है। इनका लक्षण नहीं सूत्र नौ ९ से जानना चाहिये । 'से तं पायच्छित्ते' इस प्रकार से यह आभ्यन्तर તેને પાંચમે ભેદ છે. એકાગ્રતા થવા માટે મનને સ્થિર કરવું તે દયાન છે तया सूत्राथन बिन २त. ५ ध्यान उपाय छे. ५ 'विउस्लगों व्युत् એ તેનો છઠ્ઠો ભેદ છે. ૬ વ્યુસ એટલે શરીરમાં મમત્વને ત્યાગ કરે અર્થાત કાર્યોત્સર્ગ કરે. આ રીતે આ છ આભ્યન્તર તપ કહેલ છે. ___से किं तं पायश्चित्ते' 3 सगवन् प्रायश्चित्त टक्षा प्रानुस छ ? मा प्रशन उत्तरमा प्रसुश्री ४ छ -'पायच्छित्ते दमविहे पत्ते' गौतम! प्रायश्चित्त ४प्रातुं धु छ. 'तं जहा' ते इस प्रा२ प्रमाणे छे. 'आलोयणारिहे जाव पारंचियारिहे' सोयना योग्य यात्५४थी माहतपना પ્રકરણમાં કહેલ-પ્રતિકમણને ચેગ્ય, તદુભય ગ્ય, વિવેકને ચેગ્ય, વ્યુત્સર્ગને ગ્ય અનવસ્થાપ્યને યોગ્ય અને પાચિતને યોગ્ય આ બધાનું લક્ષણ ત્યાં જ सत्र नवमाथी सभा से तं पायच्छित्ते' मारीत सामान्यन्त२ पहना શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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