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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.५ सू०२ सागरोपमादि कालमाननिरूपणम् २९ पोग्गलपरियट्टा' अनन्तपुद्गलपरिवर्त स्वरूपोऽतीतकालो भवतीति । एवं अणागयदावि' एवमनागनादाऽपि अनागतकालोऽपि एवं सगदावि एवं सद्धिा -सर्वकालोऽपि नो संख्यातपुद्गलपरिवर्तवरूपो भवति न वा असंख्यात पुद्गलपरिवर्तस्वरूपो भवति किन्तु अनन्तपुद्गलपरिवर्तस्वरूप एवं अतीतकालो. नागतकालः सर्वकालश्च भवतीति भावः । 'अणागयद्धाणं भंते ! किं संखेज्जामो तीतद्धाओ असंखेज्जाओ अणंताओ' अनागताद्धा-अनागतकालः खलु भदन्त ! संख्यातातीतादाकालरूपो भवति अथवा असंख्यातातीताद्धारूपो भवति अनन्तातीताद्धारूपो वा भवतीति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो संखेज्जाओ तीतद्धाओ णो असंखेज्जामो. है किन्तु-'अणंता पोग्गलपरियहा' अनन्त पुद्गल परिवर्तरूप होता है 'एवं अणागयद्धा वि' इसी प्रकार से भविष्यत्काल भी अनन्त पुद्गल परिवर्तरूप होता है । संख्यात अथवा असंख्यात पुद्गल परिवर्तरूप नहीं होता है। इसी प्रकार से 'एवं सम्बद्धा वि' सर्वकाल भी अनन्त पुदलपरिवर्तरूप होता हैं, संख्यात अथवा असंख्यात पुद्गल परिवर्तरूप नहीं होता है। 'अणागयद्धा णं भंते । किं संखेज्जाओ तीतद्धाओ असंखेजामो अर्णताओ' इस सूत्र द्वारा श्रीगौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! अनागतकाल क्या संख्यात अतीतकाल रूप होता है। अथवा असंख्यात अतीतकाल रूप होता है ? अथवा अनन्त अती. तकाल रूप होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-गोयमा ! नथी, तभ मसभ्यात ५६५५ परिवत ३५ ५५ ता नथी. ५२ 'अणता पोग्गलपरियट्टा' मनत पुगत परिवत ३५ डाय छे. 'एवं अणागयद्धा वि' એજ પ્રમાણે ભવિષ્ય કાળ પણ અનંત પુદ્ગલ પરિવર્ત રૂપ હોય છે. સંખ્યાત Aथा असभ्यात पुस परिवत ३५ डाता नथी, मेल प्रमाणे 'एवं सव्यद्धा વિ' સર્વ કાળ પણ અનંત પુદ્ગલ પરિવર્તરૂપ હોય છે, સંખ્યાત અથવા અસંખ્યાત પુદ્ગલ પરિવર્ત રૂપ હેતા નથી. 'अणागयद्धा णं भंते ! कि सखेज्जाओ तींतद्धाओ असंखेज्जाओ अणताओ આ સૂત્રપાઠ દ્વારા ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુશ્રીને એવું પૂછયું છે કે-હે ભગવાન અનાગત કાળ શુ સંખ્યાત અતીત કાળ રૂપ હોય છે ? અથવા અસંખ્યાત અતીત કાળ રૂપ હોય છે ? કે અનંત અતીતકાળ રૂપ હોય છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री गौतमस्वामी ने छे - 'गोयमा ! णो सखेज्जाओ तीतद्धाओ' શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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