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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०८ प्रतिसेवनायाः निरूपणम् ४१३ रुपालब्धोऽपि न कुप्यति ७ । 'दंते' दान्तो दान्तेन्द्रियतया शुद्धिं सम्यग् वहति ८ । 'अमाई' अमायी - मायारहितोऽगोपयन्नपराधमालोचयति ९ । 'अपच्छाणुवापी' अपश्चादनुतापी-आलोचिते अपराधे पश्चात्तापमनुकुर्वन् कर्मनिर्जराभागी भवतीति १० । 'अहिं ठाणेहिं संपन्ने अणगारे अरिहइ आलोयणं पडिच्छित्तए' अभिः स्थाने संपन्नोऽनगारोऽर्हति योग्यो भवति आलोचनां प्रतीष्टुम् - दातुम् अष्टाभिः गुणैः संपन्नः साधुरालोचनादाने योग्यो भवतीत्यर्थः, ताटवाष्टगुणयुक्त मेव दर्शयति- 'तं जहा' इत्यादिना, 'तं जहा' तद्यथा 'आयाखं' आचारवान् - ज्ञानादि पञ्चप्रकारकाचारयुक्तः १ । ' आहारखं' आधारवान् - अवधारणवान्भांति स्वीका कर लेता है। 'खंते' आलोचकको क्षमावाला होना चाहिये - इसलिये कि वह गुरु के द्वारा धमकाये जाने पर भी क्रुद्ध नहीं होता है। 'दंते' आलोचक को दान्त (इन्द्रिय दमन करने वाला) इसलिये होना चाहिये कि ऐसा साधु शुद्धि को अच्छी प्रकार से धारण कर लेता है ८ । 'अमाई' आलोचक को अमायी (कपट रहित) होना चाहिये - इसलिये कि ऐसा साधु अपने अपराधों को बिना छिपाये ही उनकी सम्यग् आलोचना करता है ९ । 'अपच्छाणुतापी' आलोचक को अपश्चात्तापी इसलिये होना चाहिये कि ऐसा आलोचक आलोचना लिये बाद पश्चात्ताप नहीं करता है और कर्मनिर्जरा का पात्र होता है १० । 'अहिं ठाणेहिं संपन्ने अणगारे अरिes आलोषणं पडिच्छितए' आठगुणों से युक्त अनगार साधु आलोचना सुनने के लिये योग्य होता है जैसे- 'आधार' आचारवान् -ज्ञानादिरूप पांच प्रकार के आचारों से जे युक्त होता है वह आचार એવા સાધુએ સારી રીતે પ્રાયશ્ચિત્તને સ્વીકારી લે છે. ‘વંતે’ આલેચક ક્ષમા શીલ હાવા જોઈએ. કેમકે તેઓ ગુરૂદ્વારા ધમકાવવા છતાં ક્રોધ કરતા નથી.૭ તે' આલેચકને દાન્ત (ઇન્દ્રિયાનુ ક્રમન કરવાવાળા) એ માટે હેાવુ જોઇએ सेवा साधु सारी रीते शुद्धीने धार उरे छे. ८ 'अमाई' आलोयडे सभायी (भाया- दुपट) होवु लेहो अर - मेवा साधु पोताना अपराधीने छुपाव्या बगर ४ तेनी सारी रीते आसोयना उरे छे. ८ 'अपच्छाणुतावी' ग्यासोय डे પશ્ચાત્તાપ વગરના એ માટે હાવું જોઈએ કે-એવા આલેચક આલેચના લીધા पछी पश्चात्ताप ४२ता नथी भने उर्भ निराना पात्र हाय छे. १० 'अट्ठहिं ठाणे अणगारे अहिइ आलोयण' पडिच्छित्तए' आठ गुणोथी युक्त नगारसाधु मासोयना मापवाने योग्य होय छे. १ मे रीते 'आयारखं' मायार શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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