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________________ ममेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ १०७ पञ्चविंशचम परिमाणद्वारनि० ३९९ पदि सन्ति-भवन्ति तदा-'जहन्नेणं एको वा दो वा तिभिवा' जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा 'उक्कोसेणं सयपुहुत्त' उत्कर्षेण शतपृथक्त्वम् द्विशनादारभ्य जब शतपर्यन्तम् । 'पुष्वपडियन्नए पडुच्च' पूर्वपतिपद्यमानान् प्रतीरय-पूर्वकालिक छेदोपस्थापनीयसंयमप्राप्तपुरुषान् अपेक्ष्येत्यर्थः 'सिय अस्थि सिय नत्वि' स्यात्-कदाचित् सन्ति-भवन्ति स्यात्-कदाचित न सन्ति न भवन्ति 'जइ अत्यि' पदि सन्ति तदा 'जहाने गं कोडीसयपुहुतं' जघन्येन कोटिशतपृथक्त्वम् 'उकोसेण वि कोडि सयपुहुत्तं' उत्कर्षेणापि कोटि शतपयक्त्वम् 'परिहारविमुदिया जहा पुलागा' परिहारविशुटिकाः खलु भदन्त ! एकसमये कियन्तो भवन्तीति प्रश्नः ! हे गौतम ! पतिपद्यमानान् श्तीत्य स्यात् सन्ति स्यान्न सन्ति यदि एक अथवा दो अथवा तीन होते हैं और उत्कृष्ट से 'सय पुहत्त' शतपृथक्त्व होते हैं-दो सौ से लेकर ९ सौ तक एक समय में होते हैं । तथा-'पुव्वपडिवानए पडुच्च' पूर्व प्रतिपनकों की अपेक्षा से-पूर्वकाल में छेदोपस्थापनीयसंयम को प्राप्त हुए पुरुषों की अपेक्षा से-वे 'सिय अस्थि सिय नत्यि' एक समय में कदाचित् होते भी हैं और कदाचित् नहीं भी होते हैं 'जइ अस्थि यदि वे होते हैं तो 'जहन्नेणं कोडी सयपुहृत्तं' जघन्य से कोटिशत पृथक्त्व होते हैं और 'उक्कोसेणं वि' उत्कृष्ट से भी वे 'कोडिसयपुटुत्तं' कोदिशत पृथक्त्व होते हैं । 'परिहारविस्तुद्धिया जहा पुलागा' पुलाकों के जैसे एक समय में परिहारविशुद्धिकसंघत होते हैं-अर्थात् जब गौतम ने प्रभुश्री से पूछा कि हे भदन्त ! परिहारविशुद्धिकसंयत एक समय में कितने होते है ? જે હોય છે, તે જઘન્યથી એક અથવા બે અથવા ત્રણ હોય છે. અને Grg2थी 'सयपुहुत्तं' शत५५५ डाय छे, मेटले , माथी धने नसे। सुधी मे समयमा डाय छे. तथा 'पुवपडिवन्नए पडुच्च' ५ प्रतिप-ननी अपेक्षाथी-जमा छो५स्थानीय प्राप्त थये। ५३षानी अपेक्षाथी 'सिय अस्थि सिय नत्थि' से समयमा पार लाय पण छ, भने अपार नथी ५९ ता. 'जइ अस्थि' ने तेस। यहे, त 'जहन्नेणं कोडीसयपुहत्त' धन्यधी टि शतपृथ५ सय छे. 'उक्कोसेण वि कोडीसयपुहत्त' ७४थी ५ Le शत५५.१ डाय छे. 'परिहारविसुद्धिया जहा पुलागा' yान थन प्रमाणे समयमा परिवारविशद्धि સંવત હોય છે. અર્થાત્ જ્યારે ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને એવું પૂછ્યું છે કે-હે ભગવન પરિહારવિશુદ્ધિક સંયત એક સમયમાં કેટલા હોય છે ? ત્યારે પ્રભુશ્રીએ ઉત્તરમાં એવું કહ્યું કે હે ગૌતમ! પ્રતિપદ્યમાન પરિહાર શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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