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________________ ३९४ भगवतीसूत्रे भवेदित्येचं क्रमेण पुलाकप्रकरणवदुत्तरमवसेयम् । एवं जाव मुहुमसंपराए' एवं सामायिकसंयतवदेव यावत्सूक्ष्मसंपरायोऽपि ज्ञातव्या, अत्र यावत्पदेन छेदोपस्थापनीयपरिहारविशुद्धिकसंयतयोः संग्रहो भवति तथा च छेदोपस्थापनीया. दारभ्य सूक्ष्मसंपरायान्ताः संयताः न लोकस्य संख्येये भागे भवेयु नेवा संख्यातेषु भागेषु भवेयु नवा सर्वलोके भवेयुः किन्तु लोकस्यासंख्यातभागमात्रे मवेयुरिनिभाषः । 'अहक्खायसंजए जहा सिणाए' यथाख्यातसंयतो यथा स्नातकः यथाख्यातसंयतोहि लोकस्य संख्येयभागे न भवेत् न वा लोकस्य संख्यातेषु भागेषु भवेत् किन्तु लोकस्य असंख्येयभागे भवेत् असंख्यातेषु भागेषु वा भवेत् सर्वलोके वा भवेत् केवलिपमुद्घातापेक्षयेति द्वात्रिंशत्तमद्वारम् (३२) के प्रकरण के जैसा यहां उत्तर जानना चाहिये । 'एवं जाव सुहमसंपराए' सामायिकसंयत के जैसा ही यावत् सूक्ष्मसंपरायसंयत भी जानना चाहिये । यहाँ यावत्पद से छेदोपस्थापनीयसंपत एवं परिहारविशुद्धिकसंयत इन दोनों का ग्रहण हुआ है। तथा च-छेदोस्पस्थापनीयसंयत से लेकर सूक्ष्मसंपरायसंयत तक के जीव लोक के संख्यातवें भाग में लोक के संख्यातो भागों में लोक के असंख्यातों भागों में एवं सर्व लोक में नहीं होते हैं किन्तु वे सब लोक के असंख्यातवें भाग में ही सोते हैं। 'अहक्खायसंजए जहा सिणाए' यथाख्यातसंयत स्नातक के जैसे लोक के संख्यातवें भाग में नहीं होते हैं, संख्यातभागों में नहीं होते हैं। किन्तु वे लोक के असंख्वालवे भाग में होते हैं, असं. ख्यातभागों में होते हैं और सर्वलोक में भी होते हैं। सर्वलोक में उनके होने का कथन केवलि समुद्घात की अपेक्षा से है ऐसा जानना चाहिये । ३२ वां क्षेत्रद्वार का कथन समाप्त । उत्तर पाय समg. 'एवं जाव सुहमसंपराए' सामायिः सयतनथन પ્રમાણે યાવતું સૂક્ષ્મસં૫રાય સંયતનું કથન પણ સમજવું. અહિંયાં યાવ૫દથી છેદે પસ્થાપનીય સંયત અને પરિહારવિશુદ્ધિક સંયત આ બંને ગ્રહણ કરાયા છે. તથા છેદપસ્થાપનીય સંયતથી લઈને સૂમસં૫રાય સંયત સુધીના જીવે લેકના સંખ્યાતમાં ભાગમાં લેકના અસંખ્યાત ભાગમાં અને સર્વલેકમાં हाता नथी. ५५ ते अधान मसायातमा भागभांडाय छे. 'अहक्खायसंजए जहा सिणाए' यथाभ्यात सयत स्नातना ४थन प्रभाएं सोना સંખ્યાતમા ભાગમાં હોતા નથી. સંખ્યાત ભાગમાં હતા નથી. પરંતુ તે લોકના અસંખ્યાતમા ભાગમાં હોય છે, અસંખ્યાત ભાગમાં હોય છે, અને સર્વ લેકમાં પણ હેવાનું કથન કેવલિસમુદ્દઘાતની અપેક્ષાથી છે, તેમ સમજવું, બત્રીસમા ક્ષેત્રદ્વારનું કથન સમાપ્ત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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