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________________ - भगवतीसरे वस्थातः पूर्वमेव आयुष्कर्मणो बन्धसद्भावाद मोहनीयं च कर्म बादरकषायो. दयाभावात् न बध्नाति अतएवायुष्कमोहनीयकर्मद्वयवर्जिताः षट्कर्मप्रकृतीरेष वघ्नातीति भावः । 'अहक्खायसंजए जहा सिणाए' यथाख्यातसंयतो यथा स्ना. तक, यथाज्यातसंयतः खलु भदन्त ! कतिकर्ममकृती बंध्नाति ? गौतम ! एकमकारक कर्मप्रकृतिबन्धको चा भवति अबन्धको वा भवति कर्मप्रकृतेर्यशाख्याता, एका कर्मपति बनन् घेदनीयकर्मप्रकृतिमा बन्नातीति भावः (२१)। __'सामाझ्यसंजए णं भंते ! कइ कम्मपगडीओ वेदेई' सामायिकसंयतः खलु भदन्त ! कति कर्मप्रकृतीवेदयति-कति कर्मप्रकृतीनां वेदनं करोतीवि प्रश्ना, छोडकर सूक्ष्मसंपरायसंयत छह कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है। यह आयुष्क कर्म का बन्धक इसलिये नहीं होता है कि अप्रमत्तावस्था से पहिले ही आयुष्क कर्म का बन्ध होता है। तथा मोहनीय कर्म का बन्ध चादर कषाय के अभाव होने से इसे नही होता है । 'अहक्खाय. संजए जहा सिणाए' हे भदन्त यथाख्यातसंयत कितनी कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है ? उत्तर में प्रभुश्री करते हैं-हे गौतम ! यथाख्यात. संयत एक प्रकार की कर्म प्रकृतियों का बन्ध करता है । अथवा यह बन्ध नहीं भी करता है। जब वह एक प्रकार की कर्मप्रकृति का बन्ध करता है तब केवल एक वेदनीय कर्म प्रकृति का ही बन्ध करता है। इक्कीसवां बंध द्वार समाप्त २२ वां वेदन द्वार का कथन 'सामाइयसंजए णं भंते ! कह कम्मपगडीओ वेदेई' हे भदन्त ! सामायिकसंयत कितनी कर्म प्रकृतियों का वेदन-अनुभवन करता है ? મિહનીય કર્મ પ્રકૃતિને છોડીને સૂમસં૫રાય સંયત છે કર્મ પ્રકૃતિને બંધ કરે છે. તે આયુષ્ય કર્મ પ્રકૃતિને બંધ કરનાર એ માટે હેતા નથી કે–તે અપ્રમત્ત અવસ્થાની પહેલા જ આયુષ્ય કમને બંધ કરે છે. તથા મોહનીય કર્મ પ્રકૃતિને બંધ બાદર કષાયના અભાવપણાને લઈને તેને હેતે नथी. 'अहक्खायसंजए जहा सिणाए' भगवन् यथाण्यात सयतमी भ. પ્રકૃતિને બંધ કરે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે-હે ગૌતમ! યથાખ્યાત સંયત એક પ્રકારની કર્મ પ્રકૃતિને બંધ કરે છે, અથવા નથી પણ કરતા જ્યારે તે એક પ્રકારની કર્મ પ્રકૃતિને બંધ કરે छे, त्यारे त ण मे वहनीय भ प्रकृति। " ' रे छे. 'सामाइय संजए णं भंते ! कहकम्मपगडीओ वेदेइ' ३ मा सामायि३ सयत Real શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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