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भगवतीसूत्रे 'सामाइयसंजए गं भंते ! किं सजोगी होऊना अजोगी होज्जा' सामायिकसंयतः खलु भदन्न ! किं सयोगी भवेत् अयोगी वा भवेदिति प्रश्नः, मावानाह-'गोयभा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सजोगी होज्जा जहा पुलाए' सयोगी-योगवान् भवेद् यथा पुलाका, सामायिकसंपतो योगवान् भवेत् न तु अयोगी भवेत् यदि सयोगी भवेत् तदा कि मनोयोगवान् क्चोयोगवान काययोगान् वा भवेत् ? गौतम ! त्रिप्रकारकयोगवान् भवतीति भावः, । 'एवं जाव सुहमसं रायसंजए' एवं यावत् सूक्ष्मसंपरायसंयतः, यावत्पदेन छेदोपस्थापनीयपरिहारविशुद्धिकसंगतयोग्रहणं भवतीति तथा च की अपेक्षा अथाख्यात्रसंयत की अजघन्य अनुत्कृष्ट चारित्रपर्यायें अनन्तगुण अधिक है। १५ वां सन्नि कर्ष आदि द्वार का कथन समाप्त।
सोलहवां हार को कथन 'सामायजए णं भंते ! कि सजोगी होजना, अजोगी होज्जा' है भदन्त ! सामायिकसयत क्या योग सहित होता है अथवा योग रहित होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोधमा ! सजोगी होज्जा जहा पुलाए' हे गोलम ! सामायिक संपत पुलाक के जैसे योग वाला होना है। योगरहित नहीं होता है। यदि वह योग सहित होता है तो क्या हे अदन्त ! वह पनोयोगवाला होता है ? अथवा वचन योग वाला होता है ? अथवा काययोग वाला होता है ? उत्तर में प्रसुश्री कहते हैं-हे गौतम वह तीनों प्रकार के योग वाला होता है। 'एवं जाव सुनसहकामसंजए' इसी प्रकार से छेदोपस्थापनीय मंयत परिहारविशुद्धिक संघत और सूक्षरसंपराय संयत ये तीनों भी અનુકૂષ્ટ ચારિત્રપર્યાયે અનંતગણ વધારે છે. એ રીતે આ પંદરમા સન્નિ કર્ષદ્વારનું કથન કરેલ છે ૧૫
वे सेम द्वा२नु ४५- ४२i मावे छे.-'सामाइयसंजए णं भंते ! कि सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा' हे सगवन् सामाथि सयत या હોય છે કે રોગ વિનાના હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે 3-गोयमा : सजोगी होता जहा पुलाए' है गौतम ! सामायि संयत yatકના કથન પ્રમાણે ગવાળા હોય છે, જેમાં વિનાના હોતા નથી. જે તે યેગ સહિત હોય છે, તે શું તે મને ગવાળા હોય છે ? અથવા વચન
ગવાળા હોય છે ? અથવા કાયાગત ળા હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે હે ગૌતમ ! તે ત્રણે પ્રકારના ચગવાળા डायटो. 'एव' जाव सहमसंपरायसंजर' मेरी प्रमाणे छे।।५स्थानीय संयत, પરિહારવિશુદ્ધિક સંયત અને સૂમસાપરાય સંયત એ ત્રણે પ્રકારના સંયતા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧